Shri Ashok Gehlot

Former Chief Minister of Rajasthan, MLA from Sardarpura

मुख्यमंत्री से मिली छूट की वजह से ही गलतबयानी कर रहे हैं मंत्री और भाजपा विधायक सूखे व अकाल से जनता त्रस्त, सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बावजूद सरकार गंभीर नहीं सरकार को जनभावनाओं को देखते हुए शराबबंदी की संभावनाएं तलाशनी चाहिए - गहलोत

दिनांक
14/05/2016
स्थान
जयपुर


जयपुर, 14 मई। पूर्व मुख्यमंत्री श्री अशोक गहलोत ने कहा है कि राज्य में सरकार नाम की कोई चीज नहीं है। मुख्यमंत्री से मिली छूट की वजह से ही सरकार के मंत्री और भाजपा विधायक लगातार गलतबयानी कर रहे हैं। दूषित पानी से बच्चे मर रहे हैं। अकाल व सूखे की मार से आम जन त्रस्त है। गांव व अन्य पशु मर रहे हैं। सरकार नरेगा के काम खोल नहीं रही है। सुप्रीम कोर्ट की लगतार पड़ रही लताड़ के बाद भी राज्य सरकार इस मामले में गंभीर नहीं है। अभी हाल में सम्पन्न हुई कलेक्टर कान्फ्रेंस नाटक के अलावा कुछ नहीं थी। ये कान्फ्रेंस दो महीने पहले होती तो कलेक्टर्स अकाल और सूखे की इस समय ठीक ढंग से निगरानी कर रहे होते।

श्री गहलोत ने कहा कि मुख्यमंत्री जी खुद फील्ड में जायें तो इन्हें जनता से पूरा फीड बैक मिलेगा और इससे इनको तथा जनता को लाभ मिलेगा। न्याय आपके द्वार जैसे शिविर अगर पूर्ववर्ती सरकार के समय किये गये प्रशासन गांवों के संग, प्रशासन शहरों के संग अभियान की तरह गंभीरता से किये जायें तो इससे जनता की समस्याओं का समाधान होगा जो अच्छी बात है।

शराबबंदी के बारे में पूछे जाने पर पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि जनभावना को देखते हुए राज्य सरकार को शराबबंदी की संभावना तलाशने का काम अविलम्ब शुरू करना चाहिए। उन्होंने कहा कि पं. नेहरू जी, जिन्होंने स्वतंत्रता के लिए 10 साल तक जेल काटी उनका नाम पाठ्यक्रम से हटायेंगे तो नई पीढ़ी क्या प्रेरणा ग्रहण करेगी?

पार्टी में गुटबाजी के बारे में पूछे जाने पर श्री गहलोत ने कहा कि मेरा गुट सिर्फ कांग्रेस है, अगर मेरे नाम पर कोई गुटबाजी कर रहा है तो मैंने हमेशा ही ये कहा है कि प्रदेश कांग्रेस कमेटी को उसके खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए।
श्री गहलोत की मीडियाकर्मियों से हुई बातचीत इस प्रकार से है -

मंत्री/भाजपा विधायकों की बयानबाजी के संबंध में प्रश्न

अब ये तो मुख्यमंत्री महोदय की तरफ से छूट मिली हुई है। तो मुख्यमंत्री जी की जैसी भावना रही है अभी तक उसको रिप्रजेंट कर रहे हैं ये लोग। क्योंकि वो इस प्रकार के कमेंट करना मैं समझता हूं कि पब्लिक की निगाह में उचित नहीं कहा जा सकता और ये जो ऐसे शब्द काम में लिये गये हैं। चाहे भवानी सिंह राजावत जी हों, चाहे खींवसर जी हों, चाहे वो सुरेन्द्र गोयल जी हों, ये दुर्भाग्य की बात है। एक इनकी खुद की पार्टी का पूर्व विधायक शहीद हो गया हो। ये कोई कम बात नहीं कि वो आदमी की जान चली गई। मुख्यमंत्री स्वयं जाकर उससे मिल लेती या टेलीफोन से बात कर लेती तो वो आज हमारे बीच जिंदा होते, छाबड़ा जी। ये मुख्यमंत्री और इनके मंत्रिमण्डल के लोग खुद हत्यारे हैं। एक ऐसा व्यक्ति जो सिर्फ और सिर्फ शराबबंदी के लिए अनशन कर रहे थे उनकी जान चली गई। हमारे वक्त में उसने कई बार अनशन किये, हम खुद जाकर मिले उनसे कई बार। उनको मनाया, उनकी कुछ बातों को माना। एग्रीमेंट किये हमने दो बार। और जो उनकी भावना थी वो हम आगे बढ़ा रहे थे। और इस राज के अंदर ही जो उनका खुद का पूर्व विधायक था, उसकी जान चली गई, देखते-देखते। उनकी जो स्थिति बनी थी। मैं कह नहीं सकता आपको कि क्या उनके विचार थे। इसलिए ये बहुत ही दुर्भाग्य की बात है कि मंत्री इस प्रकार की बयानबाजी कर रहे हैं। उनको रोके कौन। मुख्यमंत्री रोक नहीं सकती। खुद का विश्वास जब शराबबंदी में नहीं हो तो मंत्री लोगों को छूट मिलेगी ही बोलने की। ये स्थिति है।

एक बात मैं और कहना चाहूंगा कि इसमें जो जिस रूप में बिहार के अंदर शराबबंदी हुई है। हालांकि पहले भी कई बार प्रयोग हुए हैं राजस्थान के अंदर भी वो कामयाब नहीं हो पाया। हरियाणा के अंदर भी बंशीलाल जी ने किया था ये प्रयास वो कामयाब नहीं हो पाया। बिहार की सरकार ने अब जाकर शराबबंदी की है, प्रतिबंध लगाया है। उसके बाद में मैं नोट कर रहा हूं कि पूरे देश के कई राज्यों के अंदर पहली बार बड़े रूप में ये शराबबंदी को लेकर के लोगों में एक भावना पैदा हो रही है। विशेष रूप से महिलाओं के अंदर। तो मैं मुख्यमंत्री जी से आग्रह करूंगा कि आप नये सिरे से सोचें, जो हालात ये बन रहे हैं पूरे देश के अंदर और जिस प्रकार से शराब को लेकर के तबाह हो रहे हैं, बरबाद हो रहे हैं परिवार। महिलाएं बहुत दुखी हैं। गरीब परिवार तो पता नहीं उन पर क्या बीतती होगी। वो माहौल जो बन रहा है उसको देखते हुए इनको चाहिए कि छाबड़ा जी के वक्त में जो एग्रीमेंट इन्होंने खुद ने किया था। हमारे बाद में इन्होंने भी एग्रीमेंट किया उनसे। कम से कम उसे अविलम्ब लागू करे, सुनिश्चित करें कि वो एग्रीमेंट लागू हो। और उसे बाद में जो माहौल बन रहा है उसको देखते हुए इनको एग्जामिन करना चाहिए कि ये संभावना है क्या कि राजस्थान में भी शराबबंदी लागू हो सके। ये संभावना का पता लगाना चाहिए। ये मेरा मानना है।

शराबबंदी के संबंध में प्रश्न पर

मैंने इसी लिए कहा आपको कि एक साथ में संभव नहीं भी हो तो जो एग्रीमेंट किये गये हैं, छाबड़ा जी के साथ में। उसमें कई बातें ऐसी है जिसमें कि शराबबंदी पूरी नहीं भी हो तब भी शराब का चलन कम कैसे हो सकता है। जैसे 8 बजे बंद करने का निर्णय किया हमने, उसका बहुत बड़ा इम्पैक्ट पड़ा था। आज स्थिति ये है कि जो ठेके दिये गये हैं ग्राम पंचायत स्तर पर, वो ठेके नाम के ग्राम पंचायत स्तर के हैं, गांव-गांव में अलग ठेके खुलने लग गये हैं, अवैध रूप से। उसको बढ़ावा दिया जा रहा है सरकार की तरफ से। कोई पूछने वाला नहीं, कोई रोकने वाला नहीं, कोई टोकने वाला नहीं। ये जो स्थिति बनी है, मैं समझता हूं कि शराबबंदी की बात छोड़ो, शराब को और ज्यादा विस्तार देने की बात हो रही है राजस्थान में। ये स्थिति बन गई है। ज्यादा दुकानें खुल रही हैं, अवैध दुकानें खुल रही है, कोई रोक नहीं रहा है, कोई टोक नहीं रहा है। सवाल इस बात का है।

कोटा में एक स्टूडेंट की हत्या के संबंध में श्री भवानी सिंह राजावत के बयान पर प्रश्न

भवानी सिंह राजावत जी खबरों में बने रहने के लिए लालायित हैं। क्योंकि मुख्यमंत्री जी की नजर अभी तक उन पर पड़ी नहीं है। कि कब वो मंत्री पद की शपथ लें। तो किसी न किसी रूप में न्यूज में रहना चाहते हैं, इसलिए ऐसी बेतुकी बातें करते हैं।

श्री जगतसिंह के अवैध खनन को लेकर कही गई बात पर प्रश्न

सीएम से बात हो गई या नहीं हुई ये सीएम महोदय ही जवाब दे सकती हैं। पर मेरा मानना है कि जब सरकार की स्थिति ऐसी बनती है जब सरकार नाम की कोई चीज नहीं होती, जब कुशासन होता है या जो माहौल बन जाता है इस प्रकार का कि सबको छूट मिल जाती है बोलने की तब जाकर इनके विभिन्न मंत्री, इनके विभिन्न विधायक, कोई भी कुछ भी बोल सकता है। क्योंकि उनको मालूम है कि सरकार नाम की चीज नहीं है। कितने नाटक किये इन्होंने। 15-15 दिन गये थे, भरतपुर, उदयपुर और बीकानेर। कोटा का प्रोग्राम तो 6 बार पोस्टपोन हो चुका है। फिर मुख्यमंत्री जी ने कहा कि मैं खुद जाउंगी, 4-4 दिनों के लिए जिलों के अंदर। वो 4-4 दिन वाला प्रोग्राम बाड़मेर, सवाई माधोपुर, नागौर आकर अटक गया। अब बाद में पता नहीं कब जायेंगी। बीजेपी ऑफिस के अंदर जनता दरबार लगेंगे मंत्रियों के। मैंने कहा था ये नाटक पहले कई बार कर चुके हैं ये लोग, उसमें कामयाब नहीं होंगे। अब मीडिया खुद कह रहा है कि ये प्रोग्राम वहां कामयाब नहीं चल रहा है। तो ये स्थिति इस सरकार की बनी हुई है कि सरकार नाम की कोई चीज नहीं है। अधिकारी वर्ग में कोई मैसेज नहीं है। अकाल व सूखा भयंकर पड़ा हुआ है। गायें मर रही हैं। हमारे पीसीसी प्रेसिडेंट खुद जाकर आये सचिन पायलट जी। देख के आये तब भी सरकार की नींद नहीं खुली है। जबकि होना ये चाहिए कि अगर विपक्ष का नेता कोई जाकर आये, वो आकर कहता कि ये स्थिति है तो उसको तवज्जो देनी चाहिए, जनहित के अंदर। वो भावना सरकार में रही नहीं है। चारे का प्रबंधन नहीं। पीने के पानी का प्रबंधन नहीं। नरेगा के काम नहीं खोल रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट लताड़ लगा रहा है बार-बार, राज्य सरकारों को। ये स्थिति में ये सरकार चल रही है।

गवर्नमेंट के ढाई साल हो चुके हैं, लोगों को जो आस थी के संबंध में प्रश्न

आप देखिए ना अभी कलेक्टर कान्फ्रेंस बुलाने का क्या तुक था। दो महीने पहले बुलाते और इंस्ट्रक्शन देते कि अकाल सूखे की स्थिति है, आपको चारे का प्रबंधन भी करना है, नरेगा के काम भी खोलने हैं, पीने के पानी का प्रबंधन भी करना है। आपातकालीन योजनाएं बनानी हैं ढंग से। अब आपने यहां बुलाकर बैठा दिया। अभी तो मॉनिटरिंग का वक्त था कि कलेक्टर्स फील्ड में काम करते और इनके मंत्री और मुख्यमंत्री जी जो हैं वो बाकायदा उसकी मॉनिटरिंग करते, दौरे करके। ना दौरे हो रहे हैं, गर्मी के अंदर, लू के अंदर। कौन जाये लू के थपेड़े खाने के लिए। इसलिए ऐसे हालात बने हैं। ये लोग बोलने की हिम्मत इसलिए हो रही है कि कोई सुनने वाला नहीं है, कोई कहने वाला नहीं है। कोई अंकुश नहीं है।

न्याय आपके द्वार शिविरों को लेकर प्रश्न

देखिए अभी शुरू ही हुए हैं, इसलिए फीड बैक मेरे पास है नहीं इस प्रकार का। और मैं कोई टिप्पणी नहीं करना चाहूंगा। पर पहले अभियान चला तब तक तो कोई दम था नहीं और अब भी मुझे सीरियसनैस लगती नहीं है जिस प्रकार होनी चाहिए। मुख्यमंत्री जी ने दौरे किये हैं अभी, कहना चाहूंगा कि अगर इस प्रकार के दौरे वो लगातार करें मान लीजिए और अच्छी मॉनिटरिंग करवाये मंत्रियों से, हो सकता है ये अभियान कामयाब हो जाये जो होना चाहिए जनहित के अंदर। हमारे प्रशासन गांव के संग, प्रशासन शहरों के संग सारे अभियान हमारे बहुत अच्छे रहे थे। तो मैं चाहूंगा कि अगर इसी से पब्लिक की समस्या का समाधान होते हों तो अच्छी बात है। और जो इनके सरकार बनते ही जो इन्होंने पूर्वाग्रह को लेकर जो इन्होंने निर्णय किये थे, तमाम हमारी योजनाओं को बहुत ही कमजोर कर दिया। पेंशन की भी, फूड सिक्योरिटी की भी, पीडीआर सिस्टम को भी, आवास की योजना को भी। जो जो इन्होंने उस वक्त में निर्णय किये जल्दबाजी में, उसका असर ये हो गया कि अब वो योजनाएं ढंग से चल ही नहीं पा रही हैं। तो अगर ये फील्ड में जायेंगी, मुख्यमंत्री जी खुद जाकर के, मंत्री जायेंगे, अभियान के दरमियान भी। एक्चुयल में गांव वाला क्या सोच रहा है, आवास योजना के बारे में, पेंशन कितने महीने से नहीं मिल रही है या अन्य समस्याएं क्या वहां पर हैं दवाइयां हैं कि नहीं है। पूरा फीडबैक मिलेगा इनको और जनता को लाभ मिलेगा।

दूषित पानी को लेकर तो सांवरमल जाट जी का जो जुमला लोगों की जुबान पर है कि जो आयेगा वो तो जायेगा ही जायेगा। जिस सरकार की ये सोच हो वो सरकार कभी गंभीर हो ही नहीं सकती। इतने बच्चे मर गये, विमंदित। दूषित पानी से लोग बीमार पड़ रहे हैं। बच्चे बीमार पड़़ रहे हैं पर सरकार की तरफ से कोई ठोस कार्रवाई हो ही नहीं रही है। इसलिए मैंने कहा कि सरकार नाम की कोई चीज रही नहीं राजस्थान में।

पाठ्यक्रम में बदलाव के संबंध में प्रश्न

देखिए कांग्रेस ने अपनी बात कह दी। भावना बता दी। पं. नेहरू सबसे ज्यादा फ्रीडम मूवमेंट में जेल जाने वालो में हैं। 10 साल तक कोई जेल में रहा है तो पं. नेहरू रहे थे। देश के प्रथम प्रधानमंत्री थे। अगर ऐसे महापुरूषों के आप जो उनके अध्याय हैं उनको हटायेंगे, नई पीढ़ी क्या शिक्षा ग्रहण करेगी। तो कांग्रेस ने अपनी भावना बताई है, अब इनके ऊपर है कि किस रूप में उसको लेते हैं। क्योंकि इन्होंने राजीव गांधी सेवा केन्द्रों के नाम बदल दिये, अटल सेवा केन्द्र लिख दिये। राजीव गांधी स्वयंसेवी पाठशालाएं थी 25 हजार के करीब उसके नाम बदल दिये। नाम बदलने में ये लोग माहिर हैं खुद कोई काम करते नहीं हैं। अगर ये खुद नई बिल्डिंगें खड़ी करते, उनका नामांकन करते अटल सेवा केन्द्र के नाम से तो एक विकास की कड़ी जुड़ती और मैं समझता हूं कि जनता को, गांव वालों को लाभ मिलता। बजाय पुरानी बिल्डिंगां के नाम बदल दो आप। क्या उसका नतीजा निकलता है।

देखिए हमारे वक्त में बदले गये होंगे, मैं नहीं कहता कि उस वक्त में क्या फैसला हुआ क्योंकि ये तो कमेटी बनती है पर मेरा मानना है कि उस वक्त में इनको ऑब्जेक्शन करना चाहिए था। अगर मान लीजिए कुछ बुरा लगा, सरकार जवाब देती उसका। कि ये क्यों बदले गये हैं। गाईड-लाईन तो होती है कि नहीं होती है। पं. नेहरू तो वो व्यक्तित्व था। जो दुनिया को मालूम है। वो प्रथम प्रधानमंत्री थे देश के और वो आजादी की जंग के योद्धा थे। क्यों बदले गये होंगे उनके नाम और क्या-क्या अंश हटाये गये होंगे, कमेटी पहले बनी थी। मुझे पता नहीं क्या-क्या हटाया गया था परंतु मैं इतना कह सकता हूं कि उस वक्त कोई इश्यू बनता तो उसका जवाब देते तत्कालीन मंत्री या कमेटी के लोग। कम्पेयर नहीं कर सकते आप, उस फैसले को इससे कम्पेयर नहीं कर सकते आप।

पैकेज के लिए सीएम के बार-बार पर दिल्ली जाने के संबंध में प्रश्न

पता नहीं वो सुखे को लेकर जाती है या कहां जाती है। या क्या काम लेकर जाती है हमें क्या पता? हमें पता नहीं है। तो मैं कैसे कह सकता हूं कि वो सुखे के लिये गयी, उनकी बात नहीं सुनी गयी। अभी प्रधानमंत्री जी ने मीटिंग बुलाई दिल्ली के अंदर, उसमें तो राजस्थान के मुख्यमंत्री को बुलाया नहीं गया। जो तीन राज्यों के मुख्यमंत्रीयों को बुलाया गया, तो पता नहीं क्या सोचकर बुलाया गया। यह जवाब तो केन्द्र सरकार देगी, जब मुख्यमंत्री पूछेगी की हमें क्यूं नही बुलाया गया? तो कोई गंभीरता नहीं देखी मुझे। मुख्यमंत्री जी कह सकती थी कि प्रधानमंत्री जी आप खाली तीन राज्यों के मुख्यमंत्रियों को बुला रहे हो, आज जहां-जहां सुखा पड़ा है सुप्रीम कोर्ट की जो कॉमेन्टस् है वो तो सबके लिये है। तो तमाम उन राज्यों के मुख्यमंत्रियों को बुलाकर के बैठकर के गंभीरता से बात करे और उनकी क्या-क्या रिक्वायरमेंट्स हैं उनको पूरा करने का प्रयास करे ये तो नहीं हुआ। तो यहां कोई गंभीरता नहीं देखी मुझे।

अब जो यह कैसेज हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में चले गये है तो यह ....ज्युडिशरी की भावना है। हमने जो कहना था वो प्रदेश कांग्रेस कमेटी की ब्रीफिंग में कह दिया था हमने और आज भी कायम है इस पर।

कलेक्टर कॉन्फ्रेंस के संबंध में प्रश्न

ये कलेक्टर कॉन्फ्रेंस नाटक के अलावा कुछ नहीं है, यह एक नाटक था। जिसमें कई पाटर्नर थे, जिसमें कई पार्टनर थे। उन्होंने अपनी -अपनी भूमिका निभाई। इसीलिये मंत्रियों ने अपने सिर हिलाके स्वीकृति दे दी प्रजेन्टेंशस को लेकर के। किसी को कोई ज्ञान नहीं है। तो इस प्रकार से आज जो भंयकर अकाल, सूखे की स्थिति, पीने के पानी की समस्या हो, चारे के प्रबंधन करने की आवश्यकता हो, रोजगार के लिये तरस रहे हो। आप वहां बीच में बुलाकर क्या बताना चाहते हो, लोगों को

पार्टी में गुटबाजी एवं एआईसीसी में भूल गये होंगे मुझे बुलाना बयान के संबंध में प्रश्न

हां, वो तो मैंने कहा होगा, एआईसीसी के कार्यक्रम से मैं कल ही आया हूं। एआईसीसी के अंदर, छाप दिया मैं क्यूं नहीं गया। मालूम सबको होता है, प्रोग्राम भेजा था वहां पर। मेरा गुट सिर्फ कांग्रेस है नम्बर एक। नम्बर दो अगर मेरे नाम पर कोई गुटबाजी कर रहा है, प्रदेश कांग्रेस कमेटी को चाहिये कि उसके खिलाफ कार्यवाही करें। हमेशा मैंने यह कहा है।
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