Shri Ashok Gehlot

Former Chief Minister of Rajasthan, MLA from Sardarpura

Jaipur Literature Festival

दिनांक
23/01/2020
स्थान
Diggi Palace, Jaipur


ये सौभाग्य है कि जब जेएलएफ की शुरुआत जब की गई तब भी मैं आपकी दुआओं से राजस्थान का मुख्यमंत्री था। कई साल पहले शुरुआत की गई इस साहित्य महाकुंभ की, और सफ़र तय करते- करते ये 13वां जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल हो रहा है। बहुत शानदार तरीके से नमिता जी ने, संजय रॉय जी ने तमाम उनके मित्रों ने मिलकर के इस फेस्टिवल को राष्ट्रीय- अंतर्राष्ट्रीय जगत में अपना स्थान दिलाया। जयपुर की शान है, राजस्थान की शान है ये फेस्टिवल। देश में, दुनिया के अंदर चर्चा होती है, इंतज़ार करते हैं तमाम साहित्यकार, ये सोचकर के कि एक अवसर आएगा तब खुलकर के अपने मन की बात कर सकेंगे। मन की बात भी आवश्यक है और काम की बात भी आवश्यक है। तो मैं उम्मीद करता हूं कि ये जो 13वां लिटरेचर फेस्टिवल आप सबकी उपस्थिति में हो रहा है। सबसे पहले मैं अपनी ओर से, हमारी सरकार की ओर से तमाम यहां पधारे हुए मेहमानों का हार्दिक स्वागत करता हूं। मैं उम्मीद करता हूं कि 23-27 जनवरी तक चलने वाले इस समारोह में साहित्य, संस्कृति और विभिन्न विषयों पर होने वाली चर्चाओं और गोष्ठियों से नई पीढ़ी को प्रेरणा मिल सकेगी। नोबेल, बुकर, पुलित्जर, मैग्सेसे और साहित्य एकेडमी जैसे पुरस्कार प्राप्त प्रतिष्ठित लेखकों के शामिल होने से इसका महत्व और बढ़ गया है। मुझे ये जानकर ये प्रसन्नता है कि दुनियाभर में अपनी महत्वपूर्ण पहचान बना चुके जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में अब तक 5 हजार से ज्यादा विख्यात वक्ता और 30 लाख से अधिक साहित्य प्रेमी शिरकत कर चुके हैं। इसमें सर्वाधिक तादाद युवाओं की है, जैसा कि अभी कहा गया था। फेस्टिवल का इंडस्ट्री में भी महत्व है। जो पुस्तक प्रेमी अपने प्रिय साहित्यकारों को आज तक पढ़ते आए हैं, उन्हें वे यहां रूबरू देख और सुन सकते हैं। यह मेरे लिए सौभाग्य की बात है कि हमारे प्रदेश के प्रतिष्ठित लेखक विजयदान देथा जिनको हम बिज्जी कहते थे, की प्रसिद्ध राजस्थानी कहानियां बातां री फुलवारी के अंग्रेजी अनुवाद का लोकार्पण किया जा रहा है। मैं इसके अनुवाद के लिए श्री विशेष कोठारी को बधाई देता हूं। बिज्जी की कहानियों में राजस्थानी भाषा, साहित्य, संस्कृति और लोक जीवन की झलक दिखाई देती है। बिज्जी ने बोरुंदा जैसे एक छोटे से गांव, वो गांव भी मेरे जिले में आता है और मेरी कॉन्सटीटुएंसी में आता है, गांव में रहकर के विश्व स्तर का साहित्य रचा, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त की, जो हमारे लिए गौरव की बात है। अंग्रेजी में उनकी कहानियों के अनुवाद से वे अब दुनिया के अन्य पाठकों तक पहुंचेंगे। बिज्जी ने बातां री फुलवारी पुस्तक के माध्यम से राजस्थान के लोक जीवन, लोक संस्कृति, राजस्थान की बातचीत परंपरा, लोक कथाओं, लोक कला और जीवन मूल्यों की धरोहर को संजोने का काम किया। उनका सारा साहित्य राजस्थानी भाषा को समर्पित है। उन्होंने जीवनभर अपनी मातृभाषा से लगाव रखा, इसी भाषा में संपूर्ण साहित्य की रचना की। श्री विशेष कोठारी ने बिज्जी की कथाओं का अंग्रेजी में टाइमलेस टेल्स फ्रॉम मारवाड़ शीर्षक से अनुवाद किया है। मैं उन्हें साधुवाद देता हूं। इस अनुवाद के ज़रिए राजस्थान के जीवन की ये लोक कथाएं अब देश और दुनिया में बड़े स्तर पर पढ़ी जा सकेंगी। बिज्जी की लोक कथाएं लोगों के घरों, खेतों, खलिहानों और हताई में एक-दूसरे के अनुभवों से सुनी जाने वाली कहानियां हैं। बचपन में दादी-नानी या परिवार के बुजुर्गों द्वारा जिज्ञासु बच्चों को ज्ञान मनोरंजन के साथ उनकी जिज्ञासा शांत करने के लिए कही जाने वाली बातों को कथा के माध्यम से लोगों के सामने रखा है। इन कथाओं में नैतिक शिक्षा, राजस्थान के जन-जीवन से जुड़ी कथाएं हैं। घोर अकाल के समय में भी जीवंतता रखने की कथाएं हैं। प्रकृति और पर्यावरण को बचाए रखने का संदेश है। बिज्जी ने बरसों पहले पर्यावरण के प्रति जागरूकता के लिए रूख नामक एक बड़ी पुस्तक महत्वपूर्ण मानी जाती है। बिज्जी की कहानियां बातचीत के ज़रिए राजस्थान के जन-जीवन की मर्यादाओं और आदर्शों को अपनाए जाने की कथाएं हैं। बिज्जी की राजस्थानी कहानियों पर आधारित अनेक फिल्में बनी हैं जिनमें मणि कौल की दुविधा, अमोल पालेकर की पहेली, हबीब तनवीर की चरनदास चोर, और प्रकाश झा की परिणति प्रमुख हैं। भारतीय अंतरराष्ट्रीय साहित्य के साथ उनकी रविंद्र नाथ टैगोर और एंटोन चेखव के प्रति बिज्जी की गहरी दिलचस्पी थी। वो आज हमारे बीच नहीं रहे हैं। हमारे श्रद्धासुमन उनके साथ में हैं। इन्हीं शब्दों के साथ में मैं इस साहित्य महाकुंभ के उद्घाटन की घोषणा करता हूं। धन्यवाद, जयहिंद, धन्यवाद।

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