Shri Ashok Gehlot

Former Chief Minister of Rajasthan, MLA from Sardarpura

Virtual Press Conference- #SpeakUpAgainstDeMoDisaster

दिनांक
08/11/2020
स्थान
Jaipur


एआईसीसी द्वारा राहुल गांधी जी ने और सोनिया गांधी जी ने जो #SpeakUpAgainstDeMoDisaster प्रोग्राम दिया है और ये प्रोग्राम अपने आप में देशव्यापी चल रहा है आज का दिवस विश्वासघात दिवस के रूप में मनाने की नौबत क्यों आई, जिसके बारे में जिक्र किया गया है अभी और जबसे नोटबंदी हुई है तबसे ही पूरा मुल्क सकते में आ गया था, 4 घंटे में ही 500 और एक हजार रुपए के नोट समाप्त हो जाएंगे, ये सुनते ही देशवासी सकते में आ गए। वो दिन और आज का दिन, 4 साल में जो कुछ हुआ है, चाहे वो किसान हो, मजदूर हो, छोटे व्यापारी हों जिनके काम-धंधे रोज कैश पर चलते हैं, सारे लोग बर्बाद हो गए, बेरोजगारी फैल गई और अगर मैं ये कहूं तो अतिश्योक्ति नहीं होगी कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था पूरी तरह से डिस्टर्ब हो गई और आज स्थिति ये है कि आरबीआई खुद कहती है कि 99.3 पर्सेंट पैसा वापस जमा हो गया और आज भी जो कहा गया कि डिजिटल ट्रांजेक्शन शुरु हो जाएगा, कैशलैस इकोनॉमी का जबकि स्थिति ये है कि आज, वो तो होना ही था क्योंकि यूपीए गवर्नमेंट ने तैयारी कर रखी थी, डिजिटल ट्रांजेक्शन बढ़ना ही था, इसमें कोई दो राय नहीं है, बढ़ा भी है, परंतु साथ में वापस पूरी तरह कैश की इकोनॉमी पूरे देश में प्रारंभ हो चुकी है, ब्लैक मनी वो की वो पहले की तरह चल रही है, रूप बदल गया है। और तो और ऊपर से जो इलेक्टोरल बॉन्ड शुरु किए गए हैं, ये अपने आपमें बहुत बड़ा स्कैंडल है, ये डेमोक्रेसी के लिए खतरा हैं इलेक्टोरल बॉन्ड। अगर आप इलेक्टोरल बॉन्ड के माध्यम से एक पार्टी विशेष को लाभ पहुंचाएंगे, जिसमें कोई भी जानकारी प्राप्त नहीं कर सकता है, किस पार्टी को कौनसी इंडस्ट्री वाले कितना धन दे रहे हैं इलेक्टोरल बॉन्ड के माध्यम से ये किसी को भी नहीं मालूम, इस रूप में आज इलेक्टोरल बॉन्ड हैं देश के अंदर और ये नोटबंदी के बाद में एक के बाद एक कदम उठाए गए, कभी जीएसटी का बिना सोचे-समझे, जिसके कारण आज जीएसटी की मीटिंग होती रहती है और कुछ निर्णय हो नहीं पाते हैं।
फिर कोरोना आ गया, कोरोना में जो लॉकडाउन हुआ उससे इकोनॉमी डिस्टर्ब हुई है पूरी देश की, दुनिया की, सब जानते हैं, पर जिस रूप में आर्ग्यूमेंट दिए जा रहे हैं, बजाय इसके कि आप देश को बताओ कि 4 साल में नोटबंदी के बाद में क्या स्विस बैंकों से जो पैसा आना था वो आ गया? ब्लैक मनी खत्म हो गई? नक्सलवाद खत्म हो गया? आतंकवाद खत्म हो गया? आज वाइट पेपर निकालने की जरूरत है, भारत सरकार को चाहिए कि देश की इकोनॉमी जिस दिशा में जा रही है, देश पूरा चिंतित है, व्यापार धंधे ठप्प हो रहे हैं, बेरोजगारी बढ़ रही है, जो आपने देखा बिहार के अंदर बेरोजगारी का जो इश्यू बना है चुनाव के अंदर, वो एक नमूना है कि किस प्रकार पूरा मुल्क ग्रस्त हो गया है बेरोजगारी से, नौजवानों में कितना आक्रोश है, उसकी झलक देखी आपने अभी बिहार चुनाव में। तो प्रधानमंत्री जी को चाहिए कि वो देशवासियों को बताएं वाइट पेपर निकालकर कि आपके क्या-क्या इसके इम्पैक्ट हैं, गलती की है कुछ तो सुधारें उन गलतियों को, चाहे वो जीएसटी में की गई गलतियां हैं, चाहे नोटबंदी में हैं, चाहे आपके कोरोना के कारण से जो लॉकडाउन हुआ है उसके बाद में अनलॉक हुआ है, क्या-क्या कदम उठाने चाहिए। ये कहना नाकाफी है, राज्यों का जो हक है जीएसटी में वो नहीं देना कहां की समझदारी है? ये तो राज्यों के साथ में विश्वासघात हुआ केंद्र सरकार का, ये फैडरल सिस्टम में उचित नहीं है। विश्वासघात, जो लिखित में समझौते हैं, वित्त मंत्री कह दे एक्ट ऑफ गॉड है। एक्ट ऑफ गॉड तो जो बाढ़ आती है, सूखा पड़ता है, अकाल पड़ता है वो भी एक्ट ऑफ गॉड होता है, तभी तो राज्य सरकारें डिपेंड रहती हैं केंद्र पर कि एक्ट ऑफ गॉड हो गया है, प्राकृतिक आपदा आ गई है, आप हमें इम्दाद कीजिए और ये तो समझौते वाली बात है जीएसटी वाली, उसके बाद में भी आप कहते हो एक्ट ऑफ गॉड है, आप इम्दाद कर नहीं रहे हो, राज्यों की स्थिति खराब होती जा रही है, जबकि कोरोना की लड़ाई लड़ी गई, प्रधानमंत्री जी खुद गवाह हैं 4-5 बार वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग की, किस प्रकार से राज्यों ने अपनी-अपनी हैसियत से ज्यादा बढ़कर कोरोना के अंदर लोगों को राहत पहुंचाई है देश के अंदर, भामाशाहों ने, दानदाताओं ने, आम जनता ने, सब लोगों ने मिलकर काम किया है।
जो शुरुआत नोटबंदी से की है, वो बहुत खतरनाक शुरुआत थी, खतरनाक फैसला था, खतरनाक तरीके से किया गया। ये जो तरीका है प्रधानमंत्री जी का, चाहे वो नोटबंदी हो, चाहे वो जीएसटी हो, चाहे वो एक्ट ऑफ गॉड की बात करके आप बचना चाहते हो जीएसटी से, जो राज्यों का हक है और चाहे आप जो किसानों के लिए बिल लेकर आए हो, बिना कोई स्टेक होल्डर जो किसान खुद हैं, किसान संगठनों से बात नहीं की, आपने राज्यों से बात नहीं की और राज्यसभा में क्या हुआ सबको मालूम है। आपने पब्लिक ओपिनियन लेने के लिए उचित नहीं समझा पार्लियामेंट कमेटी भेजने के लिए बिल को। ये आपकी जो सोच है, वो फासिस्ट सोच है, खतरनाक सोच है और इसीलिए हम बार-बार कहते हैं देश में लोकतंत्र को खतरा है। आज इसलिए विश्वासघात दिवस जो मनाया जा रहा है, लाखों लोग जुड़ रहे हैं इसके अंदर पूरे देश के अंदर, सुबह से मैं देख रहा हूं लाखों लोग जुड़ रहे हैं और ये प्रोग्राम जो #SepakUpAgainstDeMoDisaster चल रहा है वो इसीलिए कामयाब हो रहा है क्योंकि लोग इनकी चालों को समझ गए हैं। समय रहते हुए मैं समझता हूं कि प्रधानमंत्री जी को चाहिए, अभी भी समय है, आपने जो कुछ भी हथकंडे अपनाने थे अपना लिए आपने, आपने यहां तक कर लिया 2019 के अंदर चुनाव चल रहे थे, NSSO संगठन, 70 साल से जिसकी क्रेडिबिलिटी है उसके आंकड़े आपने बाहर नहीं आने दिए, जबकि उन आंकडों के आधार पर तमाम डिपार्टमेंट भारत सरकार के अपनी योजनाएं बनाते हैं, प्लानिंग करते हैं। पर क्योंकि बेरोजगारी के आंकड़े सामने आते और आपके लिए घातक होता चुनाव में, आपने उनको रोक दिया, उनके चेयरमैन ने इस्तीफा दे दिया, मेंबर ने इस्तीफा दे दिया इसीलिए कि हमें रोका जा रहा है, इतने संपादकीय आए, इतने आर्टिकल आए होंगे उस जमाने के अंदर तमाम देश के अखबारों में मेरे ख्याल से आज तक किसी भी सब्जेक्ट को लेकर इतने नहीं आए होंगे और जैसे ही चुनाव समाप्त हुए और वो आंकड़े बाहर आ गए। ये जो इनका तरीका है काम करने का ये मैं समझता हूं कि बहुत ही खतरनाक तरीका है और मैं समझता हूं कि समय आ गया है कि पूरे देशवासियों को समझना पड़ेगा किस प्रकार डेमोक्रेसी को खतरा पहुंचा रहे हैं, किस प्रकार हमें मुकाबला करना है। एकजुट रहना पड़ेगा ये राहुल गांधी जी का संदेश है कि विश्वासघात दिवस के रूप में लोगों में जनजागृति पैदा होनी चाहिए, इसलिए अध्यक्ष जी ने अभी आपको तमाम बातें बताईं, मैं उम्मीद करता हूं कि मीडिया भी साथ देगा क्योंकि मीडिया के ऊपर बहुत दबाव है पूरे देश के अंदर। मजबूरी में एकतरफा चल रहा है मीडिया भी, इसलिए उसको गोदी मीडिया कहने लग गए हैं लोग तो। तो समझना पड़ेगा डेमोक्रेसी बचाने के लिए जितनी जिम्मेदारी विपक्ष की है, उतनी ही जिम्मेदारी मीडिया की भी है, ये आपको, आपके संपादकों को सबके समझना पड़ेगा, धन्यवाद।
सवाल- राहुल गांधी जी का बयान आया है कि नोटबंदी सोची-समझी चाल थी और पूंजीपतियों के भारी-भरकम ऋण माफ किए जा सकें इसलिए नोटबंदी की, इधर फाइनेंस मिनिस्टर ने भी कहा कि नोटबंदी से टैक्सपेयर्स बढ़े हैं और डिजिटल पेमेंट की आदत भी बढ़ी है। तो सर अगर फायदा कम और नुकसान ज्यादा हुआ है तो?
जवाब- ये तो वो कई बार कह चुके हैं पब्लिक मीटिंगों के अंदर भी और जब मैं आपको कह रहा हूं कि इलेक्टोरल बॉन्ड भी आ गए उसके बाद में तो। ये इलेक्टोरल बॉन्ड मेरे ख्याल से आजादी के बाद में सबसे बड़ा ब्लंडर है पॉलिटिकल पार्टियों के चंदा लेने के लिए सिस्टम बनाने का और ये भी डेमोक्रेसी को कमजोर करने में बहुत बड़ी भूमिका अदा करेगा और कर रहा है और इसको अविलंब बंद करना चाहिए, इलेक्टोरल बॉन्ड immediately बंद होने चाहिए इस देश के अंदर।

सवाल- सर पहले नोटबंदी, फिर जीएसटी और अब कोरोना काल, मिडिल क्लास और लोअर क्लास की हालत बहुत दयनीय हो चुकी है, ऐसे में आपकी प्रधानमंत्री जी और केंद्र सरकार से क्या डिमांड होगी कि ये पूरी की जाए, ताकि लोगों को राहत मिले, हालात बहुत विकट हैं?
जवाब- कोरोना काल में तो उनको चाहिए कि वो जिस रूप में पेश आ रहे हैं देश के सामने, 20 लाख करोड़ का पैकेज दिया गया और वो खाली नाम का साबित हुआ है, काम का साबित नहीं हुआ है। तो उनको चाहिए कि गरीब तक पैसा पहुंचे कोई न कोई तरीके से, जैसे नरेगा से पहुंचा था, पैसा वापस से खर्च हो दुकानों पर, डिमांड बढ़े और डिमांड बढ़ेगी तो अपने आप ही सप्लाई के लिए फैक्ट्री चालू होगी, इकोनॉमी वापस लाइन पर आएगी। इकोनॉमिस्ट ये ही बात कह रहे हैं बार-बार कि आप पैसा सर्कुलेशन में लाइएगा, उसपर कोई ध्यान दे नहीं रहा है, बल्कि जो पैसा राज्यों को मिलना चाहिए जीएसटी का, उसको रोकने का कोई तुक नहीं है। तो हमारी डिमांड ये रहेगी कि आप राज्यों के साथ न्याय करें नंबर एक, इलेक्टोरल बॉन्ड समाप्त करें, ये इलेक्टोरल बॉन्ड की बात मैं आपसे बार-बार इसलिए कह रहा हूं, डेमोक्रेसी को इससे भी खतरा पैदा हो गया है। सब पार्टियों की बजाय एक पार्टी को चंदा इकट्ठा करने की उनकी मोनोपॉली हो गई है और इतना भय का माहौल है देश के अंदर, कई लोग बात करने में भी चमकते हैं टेलीफोन से भी कि फेसटाइम पर ही बात कीजिए। जिस मुल्क में ये वक्त बन जाए, सब लोग चिंता करने लग जाएं, उस मुल्क का क्या भविष्य बनेगा आप सोच सकते हो, इसलिए चिंता सबको करनी चाहिए।

सवाल- जिस तरह से अभी गुर्जर आरक्षण आन्दोलन चल रहा है और सरकार लगातार कोशिश कर रही है वार्ता करने की लेकिन उसके बावजूद कोई समाधान नहीं निकल पा रहा है, ये किस दिशा में जा रहा है और कब तक चीजों को वापस पटरी पर लाया जाएगा?
जवाब- गुर्जर आन्दोलन की जो अधिकांश उन लोगों की डिमांड्स थीं वो मान ली गई हैं और मैं समझता हूं कि जो डिमांड कर्नल साहब ने रखी थी, उसपर फैसला करने की बात भी हो गई थी उनसे, पर उसके बावजूद भी कुछ लोग जिस तरह से पेश आ रहे हैं पटरियों पर बैठकर, मैं समझता हूं कि ये गुर्जर समाज के भी हित में नहीं है क्योंकि 15 साल से बार-बार पटरियों पर बैठना, पूरा देश देख रहा है, सुप्रीम कोर्ट ने भी कमेंट किए, हाईकोर्ट ने भी कमेंट किए तो मैं कहना चाहूंगा आपके माध्यम से या आपकी मीडिया के माध्यम से गुर्जर समाज के तमाम नेताओं को भी, उनके साथियों को भी कि सरकार आपकी मांगों के साथ में हमेशा न्याय करेगी, आप निश्चिंत रहें। पहले भी जब-जब सरकार कांग्रेस की आई है तब हमेशा उनके हक में फैसले किए, चाहे वो 1 पर्सेंट का हो चाहे वो 5 पर्सेंट का हो, हमारे वक्त में ही लागू हुआ है। हजारों नौकरियां लग चुकी हैं, हजारों प्रक्रिया में चल रही हैं, सब लोग संतुष्ट हैं। अब उसके बाद में भी मैं समझता हूं कि मांगों के नाम पर वहां पर धरने पर बैठना इस प्रकार से उचित नहीं है बल्कि सरकार की जो कमेटी बनी है उनसे लगातार वार्ता करें और कोई उनकी समस्या है या उनकी मांगें हैं, सुझाव हैं उनको हम मानने के लिए हमेशा तैयार रहेंगे।

सवाल- सर दिवाली का त्यौहार आ गया है, बाजार में मंदी के हालात हैं, केंद्र सरकार से एक बड़े आर्थिक पैकेज की मांग थी ताकि देशभर में मंदी दूर हो सके, लेकिन ऐसा कोई बड़ा पैकेज राज्यों को नहीं मिल पाया है अभी तक और बेरोजगारी की स्थिति बहुत चरम पर है। ऐसी स्थिति से निपटने के लिए क्या अपील रहेगी केंद्र सरकार से?
जवाब- बिहार के परिणाम आने दो 10 तारीख को, उसके बाद में हम तय करेंगे कि हमें क्या मांग करनी है और हमारी मांगों का कितना असर पड़ेगा प्रधानमंत्री जी पर, अभी तक तो पड़ नहीं रहा है और अभी तक तो जो उनकी अप्रोच है वो अप्रोच फासिस्ट अप्रोच है। लोकतंत्र में ये उचित नहीं है कि विपक्ष क्या कहता है, जनता क्या चाहती है, हालात क्या बन गए हैं आर्थिक रूप से देश के और देश का भविष्य कैसा होगा, किस दिशा में बढ़ेगा-जाएगा इसकी चिंता होनी चाहिए प्रधानमंत्री जी को, सरकार को। मैं समझता हूं कि मुझे पूरी उम्मीद है कि जो झटका देगा नौजवान बिहार में, उसमें नौजवान कामयाब हो गया, तो जाकर हो सकता है कि सरकार की सोच बदले।

सवाल- अमेरिका के जो राष्ट्रपति चुनाव हुए हैं उसमें जो बाइडेन की जीत को आप किस तरह से देखते हैं, खास तौर पर जब प्रधानमंत्री मोदी ने उनका समर्थन किया था और आपने कमेंट किया था। अब जब ट्रंप हारे हैं तो आपका क्या कहना है, किस तरह देखते हैं आप?
जवाब- देखिए राहुल गांधी जी ने उस वक्त कहा था विदेश मंत्री जी को कि प्लीज आप सलाह दीजिए प्रधानमंत्री जी को, मोदी जी को कि किसी दूसरे मुल्क के अंदर जाकर इस तरह से कैंपेन करना उचित नहीं है। आजादी के बाद से ही जो हमारी विदेश नीति रही है पंडित नेहरू के जमाने की उसको लगातार लागू रखा गया देश के अंदर, चाहे सरकार जनता पार्टी की बन गई हो 1977 के अंदर और तत्कालीन विदेश मंत्री बने अटल बिहारी वाजपेयी जी। उनका पहला स्टेटमेंट यही था कि विदेश नीति इस देश की वो ही रहेगी जो पंडित नेहरू की बनाई हुई है और पहली बार हुआ कि मोदी जी ने जाकर वहां हाउडी मोदी और ट्रंप सरकार पता नहीं क्या-क्या सेन्टेंस काम में लिए उन्होंने, ये उचित नहीं हो सकता। उसी वक्त राहुल गांधी जी ने कहा था विदेश मंत्री जी को कि प्लीज आप मोदी जी को समझाइए, इस प्रकार जाकर अमेरिका में बात नहीं करें, पता नहीं कल क्या हो? वो ही हुआ, अब जब नए राष्ट्रपति चुने गए हैं तो आप बताइए कि पूरे देश में इस बात को लेकर आक्रोश है कि मोदी जी को जाकर के हमारे देश की प्रतिष्ठा को दांव पर नहीं लगाना चाहिए था वहां पर जो उन्होंने जाकर वहां कहा, हाउडी मोदी का आयोजन किया। मेरे ख्याल से आजादी के बाद में आपने कभी नहीं सुना होगा कि इस प्रकार से आप जाकर वहां पर दूसरे मुल्क में जाकर अपने प्रवासियों की मीटिंग करो अलग-अलग। पहले उन्होंने खुद अपने लिए स्वागत के लिए की, बाद में ट्रंप साहब के लिए की, ये परंपराएं अगर दूसरे मुल्क के लोग हमारे मुल्क में आकर मीटिंग करने लग गए देश के अंदर, चाहे वो बांग्लादेश के हों, चाहे वो चाइना के हों या चाहे वो और किसी मुल्क के लोग हों, तो क्या होगा, क्या हम लोग उसको लाइक करेंगे हमारे देशवासी? अमेरिका में अगर आप जाकर प्रवासी भारतीयों की मीटिंग करो, तो अमेरिकन्स उसको पसंद करेंगे उस बात को? जिस रूप में फैसले किए गए, जिस रूप में मोदी जी और ट्रंप की दोस्ती जो है जगजाहिर हुई, व्यक्तिगत दोस्ती क्या है वो तो आपस में उनके संबंध हैं, हमें कोई ऐतराज़ नहीं उससे। परंतु जिस प्रकार से हाउडी मोदी का प्रोग्राम, जिस प्रकार से ट्रंप साहब का हाथ पकड़कर पूरी भीड़ के अंदर उनको घुमाना, नमस्ते ट्रंप का प्रोग्राम करना गुजरात के अंदर, आप बताइए ये नई-नई स्टाइल जो है, ये कोई व्यक्तिगत मसले नहीं होते हैं। जब आप प्रधानमंत्री हो देश के तो आपको प्रधानमंत्री के रूप में ही अगली सरकार ट्रंप सरकार का नारा देना, एक प्रधानमंत्री हमारे मुल्क के दूसरे मुल्क में जाकर दे सकते हैं किसी? वहां भी पॉलिटिकल पार्टियां होती हैं, जैसे हमारे यहां अलग-अलग पार्टियां हैं वैसे वहां भी हैं, तो ये उन्होंने बहुत गलत किया था और राहुल गांधी जी ने उसी वक्त में उनको आगाह किया था और देखा आपने वो सही साबित हो गया कि अब तो सब मानते हैं कि ये नहीं करना चाहिए था।

आप सबका बहुत-बहुत धन्यवाद और क्योंकि लंबे अरसे से कोविड चल रहा है इसलिए रूबरू मीटिंग हो नहीं पा रही है। जल्द ही कोरोना समाप्त हो और हम लोग मिलना प्रारंभ करें नंबर एक बात, नंबर दो आप लोग अपना अपने परिवार का सबका ख्याल रखिएगा, और नंबर तीन जो सबसे महत्वपूर्ण ये भी है कि सरकार ने जो जनआन्दोलन शुरु कर रखा है कोरोना का मास्क लगाना ही इलाज है अभी, नो मास्क नो एंट्री। इसलिए कृपा करके आप लोग इसमें गंभीरता दिखाएं, जितना हो सके आप लोग इस कैंपेन में भाग लें, कुछ लोग भाग ले भी रहे हैं और अंत में मेरी तरफ से और हमारे अध्यक्ष जी की तरफ से आपको दीपावली की अग्रिम बहुत-बहुत शुभकामनाएं देना चाहेंगे, धन्यवाद।

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