Shri Ashok Gehlot

Former Chief Minister of Rajasthan, MLA from Sardarpura

वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से राष्ट्रीय मजदूर कांग्रेस (इंटक) के 75वें स्थापना दिवस पर वर्चुअल समारोह में सम्बोधन

दिनांक
03/05/2021
स्थान
जयपुर


हमारे महती मेहमान, हमारे राजस्थान के प्रभारी अजय माकन जी, हमारे मंत्री टीकाराम जूली साहब, प्रदेशाध्यक्ष इंटक के जगदीश श्रीमाली जी, आदरणीय प्रोफेसर आनंद कुमार जी, धर्मेंद्र राठौड़ जी, मनीष शर्मा जी राज्य समन्वयक शांति व अहिंसा प्रकोष्ठ, नारायण गुर्जर जी और जगदीश चौहान जी, मुझे आज बहुत प्रसन्नता है कि मुझे सौभाग्य मिला है कि आज मैं आपके बीच में यहां मौजूद हूं और प्रोफेसर आनंद कुमार जी, जिनको मैं जानता हूं लंबे अरसे से, अजय भाई को तो सब जानते हैं कि किस प्रकार से मजदूरों के लिए काम करते-करते यहां पहुंचे हैं, आनंद कुमार जी के विचारों से मैं अवगत हूं और उसकी एक झलक हमें अभी देखने को मिली। मैं सबसे पहले उनको विश्वास दिलाऊंगा कि जो सुझाव उन्होंने दिए हैं, वो हमारे लिए बहुत कीमती हैं और मैं वापस उनको रिपीट नहीं करना चाहूंगा समय बचाने के लिए, पर हर उनका विचार जो मैंने नोट भी किया है, मैं चाहूंगा कि जगदीश श्रीमाली जी संपर्क में रहें, एक नोट तैयार करें जिससे कि नीति निर्माताओं का, श्रमिकों का, सरकार का संवाद स्थापित हो और उद्यमी हों चाहे श्रमिक हों, सरकार हो चाहे श्रमिक हों, उनके रिश्ते कायम ऐसे हों कि जैसा कि अभी उन्होंने कहा कि देश में एक मिसाल कायम हो जाए और उसी की भावना के अनुरूप अजय माकन जी ने जो कानून बनाया था अपने वक्त में, मैं जगदीश साहब से कहना चाहूंगा कि हमें पिछले दिनों में ऐसी कोशिश की थी कि किस प्रकार से पूरी तरह उसको लागू करवाएं, हालांकि उसमें कई अड़चनें आती हैं लोकल लेवल पर, पर फिर भी हमारी मास्टर प्लानिंग तैयार करके वो एक ऐतिहासिक कानून है जिसके ऊपर उनको कार्य के अनुसार किस प्रकार उनको बसा सकें, उनका शोषण रोक सकें, उनको तो प्रतिदिन शोषण का शिकार बनना पड़ता है, पुलिस से भी और प्रशासन ने भी, सबसे ही। तो वो भी कानून कैसे लागू हो राजस्थान के अंदर, मैं चाहूंगा उसके अंदर जूली जी खुद ही एक कमिटमेंट वाले व्यक्तित्व के धनी हैं, तो मैं चाहूंगा कि वो इस काम को हाथ में लें। बहुत अच्छी बातें कही गईं, जो बताया गया कि 6-7 पर्सेंट संगठित मजदूर हैं सिर्फ, बाकी तो असंगठित ही हैं, इसमें सब सार आ जाता है। अजय माकन जी ने ठीक कहा कि 67 पर्सेंट तक कैसे पहुंचें और वो इसका जवाब यही है कि इंटक को मजबूत कैसे करें। जब गांधी जी के वक्त में और गांधी जी ने तो 1918 के अंदर ही जब मिल मालिकों को लेकर जो शुरुआत की थी अहमदाबाद के अंदर, धरने दिए थे गांधी जी ने खुद ने, उस वक्त से ही एक प्रकार से गांधी जी की भावना देश के सामने आ चुकी थी कि किस प्रकार से वो चाहते हैं कि मजदूरों का शोषण रुके और अनशन भी किए, ट्रिब्यूनल में भी गए, उनको न्याय दिलाया और जैसा कि आपने कहा कि 3 मई 1947 को तो इंटक की स्थापना करने में भी उनकी बड़ी भागीदारी रही। तो हम सोच सकते हैं कि चाहे पंडित जवाहरलाल नेहरू हों, चाहे सरदार वल्लभभाई पटेल हों, महात्मा गांधी के सानिध्य में डॉ. सुरेश बनर्जी और खंडुभाई देसाई को जिम्मेदारी सौंपकर इसकी जो स्थापना की है, उसका बहुत ही शानदार त्याग का, कुर्बानी का इतिहास रहा है। आजादी के बाद में भी जिस प्रकार से लंबे समय तक शासन कांग्रेस का रहा, इसलिए इंटक की जो मांगें होती थीं या मजदूरों की जो भावना होती थी, वो पहुंची भी है और कई ऐसे फैसले हुए हैं, कैसे उनको समानता का अधिकार मिले, कैसे उनकी मजदूरों की आवाज बुलंद हो, कानून ऐसे बनें जो उनके खिलाफ नहीं हों, अनेकों काम किए होंगे परंतु और गांधी जी और नेहरू जी के उदाहरण हैं कि किस प्रकार से मजदूरों के प्रति अपनी भावना व्यक्त करते थे। शारीरिक श्रम के बारे में आनंद कुमार जी ने कहा, गांधी जी की तो एक फिलोसॉफी थी इसमें, शारीरिक श्रम उसका क्या महत्व है, मजदूर के तो हिसाब से है, उनका मानना था कि ये भावना अगर हम लोग भरेंगे लोगों के अंदर तो श्रम की प्रतिष्ठा बढ़ेगी, डिग्निटी ऑफ लेबर, वो होना बहुत आवश्यक है जिंदगी के अंदर कि लेबर की प्रतिष्ठा हो, इसका मतलब अगर उन्होंने, जहां तक मैं समझ पाया हूं गांधी को, जो मैंने बहुत कम पढ़ा उनको, खाली उनकी जीवनी पढ़ी दो-तीन बार, थोड़ा-बहुत लिटरेचर पढ़ा होगा, परंतु शारीरिक श्रम को उन्होंने महत्व दिया कि अगर शारीरिक श्रम के बगैर आप खाना खाते हो तो वो हराम है और उसका मतलब यही था, श्रम को उन्होंने स्वास्थ्य से जोड़ा कि बिना श्रम किए अगर कोई खाना खाता है तो वो उसको डाइजेस्ट नहीं हो पाता है पूरी तरह से, तो स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता है और मैं जो आनंद ले रहा हूं अपने रूम के अंदर, जब मैं देख रहा हूं कि हर काम मैं अपने हाथ से ही कर रहा हूं अकेला, तो मुझे लगता है कि डिग्निटी ऑफ लेबर इसे कहते हैं और इससे स्वास्थ्य अच्छा भी रहता है। मुझे कोई जमाने में जो एक्टर गोविंदा है उसने कहा था, एक बार देव आनंद साहब से उनके पूछा कि आपके स्वास्थ्य का राज़ क्या है, तो वो उनके घर बैठे हुए थे, उस वक्त वो उठकर कोई चीज लेने गए थे आसपास में, तो उन्होंने कहा कि मेरे स्वास्थ्य का राज यही है। तो उन्होंने देखा कि मैंने तुम्हें कुछ नहीं कहा, मैं उठकर गया और वो चीज लेकर मैं आया हूं। अगर आप दिनभर अपने हाथ से ही अपना काम करो तो शरीर चलेगा, जैसे हम कहते हैं कि वॉकिंग करना क्यों जरूरी है, उसी रूप में अगर आप काम करोगे तो आपका शरीर स्वस्थ रहेगा, उससे जोड़कर गांधी जी ने श्रम की प्रतिष्ठा, श्रमिकों का मान-सम्मान, श्रमिकों की प्रतिष्ठा को जोड़ दिया। वो जमाना था महापुरुषों का और गांधी गांधी हो गया, एक खजाना है उनकी जीवनी का, उनके साहित्य का, लोग नई पीढ़ी को बहुत कट हो गई है वो, उसको नजदीक लाना पड़ेगा अगर देश को बचाना है, देश के लोकतंत्र को बचाना है, तो क्या इतिहास था हमारे देश का आजादी के जमाने का, क्या त्याग-बलिदान हुए, कैसे 10-10 साल तक पंडित नेहरू जेलों में बंद रहे, कितने लोग जेलों में बंद रहे थे, लंबा-चौड़ा इतिहास है, आजादी के पहले का भी और आजादी के बाद का भी। जरूरत इस बात की है कि कैसे उसको हम नई पीढ़ी तक पहुंचाएं, उसमें हम कमी महसूस करते हैं और कांग्रेस की भूमिका बड़ी होनी चाहिए, इंटक की भूमिका बड़ी होनी चाहिए, तब जाकर इस देश को बचा पाएंगे, वरना जो शक्तियां हिंदू धर्म के नाम पर, साम्प्रदायिकता के नाम पर उछाल ले लिया उन्होंने जिस रूप में, हिंदुत्व को एक लहर के रूप में बना दिया कि लोग समझने को तैयार ही नहीं हैं। इस कारण से ही नरेंद्र मोदी जी को बार-बार सफलता मिल रही है, बाकी तो मुझे लगा नहीं कि कोई उनकी उपलब्धियां हैं। बंगाल में जो पिटाई हुई है वो इतिहास में दर्ज हो गई है, किस रूप में तमाशा देश पिछले 4 महीने से देख रहा था कि धन-बल के आधार पर कुछ भी कर सकते हैं, भौंडा प्रदर्शन हुआ उसका भी, हिंदुत्व के नाम पर भी जो कुछ उन्होंने करना था कर लिया, थोड़ी सफलता उनको मिल गई, परंतु आखिर में ममता बनर्जी ने उनको धूल चटा दी और जैसा कि राहुल गांधी ने कल कहा कि बहुत शानदार तरीके से बीजेपी को पीटा गया है। तो मैं समझता हूं कि अब ग्राफ जो है, जो बढ़ना था वो बढ़ गया है। अब कोरोना की बात हो, वैक्सीनेशन की बात हो, बंगाल की बात हो, लोग समझ गए हैं कि वास्तव में इस देश में हो क्या रहा है। इसलिए मैं कहना चाहूंगा कि ये तमाम बातें जो हम कर रहे हैं, कालाबाजारी की बात भी की, तमाम एक-दूसरे से लिंक हैं। मजदूर को न्याय मिले, ये दिवस कोई मामूली दिवस नहीं है, ये अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस है क्योंकि हमारे मुल्क में इसकी स्थापना 3 मई को हुई, इसलिए हमारे लिए अलग महत्व रखता है, पर 1 मई जो है, 1 मई अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस का अपना एक महत्व है दुनिया के मुल्कों के अंदर, दुनिया के मजदूर एक हों, अगर ये बात उस जमाने में कही गई, तो मैं समझता हूं कि आज भी उसका महत्व है। आज जो शोषण हो रहा है मजदूरों का, आज जिस मजदूर ने देश को और दुनिया को बनाया है, उसका मान-सम्मान कहां होता है ? खाली मजदूरी की ही बात नहीं है, जैसा कि आनंद कुमार जी ने कहा, उसको न्याय मिले, काम की गरिमा मिले, आनंद मिले, कहने का मतलब है कि क्वालिटी ऑफ लाइफ हो उसकी, ये फिलोसॉफी ध्यान में रखकर हमें हमारे देश की नीतियों को, हमारे देश की जो सोच है, सरकार की जो सोच है, उसको बदलना पड़ेगा, बदलवाना पड़ेगा और इसीलिए मैंने कहा कि सोशल सिक्योरिटी का जमाना आ गया है। जब अभी सोनिया गांधी जी ने प्रधानमंत्री जी को पत्र लिखा तब भी और राहुल गांधी जी ने पहले कहा कि 6 हजार रुपए मिलें प्रत्येक व्यक्ति को जो गरीब आदमी है, उसके मायने यही हैं कि कम से कम वो गुज़ारा अपना कर सके डिग्निटी के साथ में, हर व्यक्ति। दुनिया के मुल्कों में सोशल सिक्योरिटी वर्षों से लागू है जो विकसित राष्ट्र हैं, सक्षम थे वो लोग। वहां बुजुर्गों के लिए, निःशक्तजनों के लिए, युवाओं के लिए जो बेरोजगार हैं, कम से कम आप उनको उतना पैसा तो दे रहे हो कि वो अपना जीवन चला सकें रोटी-कपड़ा-मकान, मकान भी पता नहीं क्या पर रोटी भी मिल जाए और कपड़ा भी मिल जाए उसको जीवन जीने के लिए, इतना तो करो आप। कोई लाख-दो लाख रुपए थोड़े ही दे रहे हो उनको आप। तो कम से कम मिनिमम जो नीड है उस व्यक्ति को जिंदा रहने की वो सोशल सिक्योरिटी का टाइम मैं समझता हूं कि आ गया है। राजीव गांधी जी तो नहीं रहे इस दुनिया में, पर उन्होंने कहा था कि 21st सेंचुरी में ले जाना है देश को, आज हमें कोशिश करनी चाहिए कि हम कैसे इस देश में सोशल सिक्योरिटी लागू करवाएं ? सरकारों पर दबाव देकर, तब मैं समझता हूं कि गरीब आदमी का जीना कुछ आसान हो सकता है। कोरोना काल में हमने उनका सर्वे करवाया जिसका अजय बाबू जिक्र कर रहे थे, रेहड़ी वाले, ठेलेवाले, मजदूर, गरीब जिनको कोई पेंशन भी नहीं मिल रही है 35 लाख लोगों का, हमने 1-1 हजार की किश्तें उनको 1000, 1000, 1500 की तीन किश्तें दीं। अभी मैंने 15 दिन पहले, 1 महीने पहले ही एक किश्त और रिलीज की है 1000 रुपए की क्योंकि मैंने बजट में घोषणा की थी कि हम दो किश्तें और देंगे गरीबों को जो कोरोना के अंदर सालभर मारा गया था, तकलीफ में भी रहा था, एक किश्त दे दी है, एक किश्त हम लोग आने वाले वक्त में और देंगे। इस प्रकार से सबसे ज्यादा ध्यान देना चाहिए और मैं समझता हूं कि इंटक के सामने अगर मुझे कोई पूछे ईमानदारी से, उनका फील्ड है काम करने का, जो संगठित मजदूर हैं तो वो हैं ही हैं, उनका तो रहेगा ही क्योंकि एक आधार है, एक मैसेज जाता है देश के अंदर, प्रदेश के अंदर, परंतु असली आधार उनका होना चाहिए असंगठित मजदूर। अगर हमारे इंटक के भाईलोग उनमें जिनमें क्षमता है, प्रशिक्षण दें हम लोग उनको, हम सरकार की तरफ से उनकी इम्दाद करेंगे, हम प्रशिक्षण दिलवाएंगे उनको और वो जाकर बड़े रूप में असंगठित मजदूर जो हैं उनके संगठन बनाएं, चाहे वो घरों में काम करने वाले महिलाएं और पुरुष हों और चाहे वो और किसी रूप में असंगठित हों, उनको संगठित करना चाहिए हम लोगों को, उनका शोषण रुकना चाहिए। अगर ये काम हम चैलेंज के रूप में स्वीकार करते हैं इंटक राजस्थान की, सरकार उनके साथ खड़ी मिलेगी सब तरह से, तन-मन-धन से जो कहते हैं कहावत है उस ढंग से। हम चाहेंगे कि पार्टी स्तर पर भी, कांग्रेस पार्टी स्तर पर भी, प्रदेश कांग्रेस कमेटी के माध्यम से भी, सरकार के माध्यम से भी, हम लोग व्यक्ति से भी, हम लोग चाहेंगे कि उनको संगठित करें क्योंकि आजकल जमाना बदल गया है देश के अंदर भी और दुनिया के अंदर भी, कानून भी ऐसे बदले जा रहे हैं संगठित मजदूरों के लिए, फैक्ट्रियों के लिए, कई आर्ग्यूमेंट दिए जाते हैं कि वो अगर संगठित होंगे तो हड़तालें यदि होंगी तो उत्पादन नहीं होगा। तो पिछले 15-20, जबसे उदारीकरण आया है, उदारीकरण के फायदे बहुत मिले हैं इसमें कोई दो राय नहीं, पर उदारीकरण के बाद में इंटक की भूमिका सीमित हो गई है। जो ओरा होता था पहले मजदूर संगठनों का, वो ओरा रहा नहीं। तो रेड्डी साहब के साथ में मुझे कई बार मिलने का मौका मिला, उदयपुर के अंदर जब कभी कॉन्फ्रेंस होती है तो मैं जाता हूं वहां पर, उनके सब कार्यक्रमों में भाग लेता हूं और हमने आपस में डिस्कस भी कई किए हैं इसके पॉइन्ट्स कि आज हमें वास्तव में नई भूमिका में आना चाहिए जो अजय माकन जी अभी कह रहे थे, वक्त आ गया है कि हम कैसे इस भूमिका में उतरें। इस रूप में मैं समझता हूं कि हमें इस काम को हाथ में लेना पड़ेगा और उसी रूप में देश में जो चैलेंज हमारे सामने है वो बहुत बड़ा चैलेंज है, उसका मुकाबला कल सोनिया गांधी जी ने तमाम अपोजिशन पार्टीज से एक स्टेटमेंट जारी करवाया है वैक्सीनेशन के बारे में भी और कोरोना के बारे में भी, उसका बहुत लोगों ने वेलकम किया कि आज लोग मर रहे हैं, ऑक्सीजन नहीं है। दुनिया के शायद किसी मुल्क में ऑक्सीजन की हाहाकार नहीं मची थी, एकाध मुल्क छोड़कर मैं नहीं कह सकता, दवाइयां ही नहीं हैं हमारे पास, अंदाज़ नहीं लगा पाए हम लोग कि दूसरा जो संक्रमण आएगा वो इतना घातक होगा, इतना भयंकर घातक है क्योंकि मैं तो 13 महीने से यही काम कर रहा हूं, जो यहां हर कोई जानता है और अजय भाई आप भी जानते हो कि किस रूप में पिछली बार 20 पर्सेंट लोगों को ही जरूरत पड़ती थी ऑक्सीजन की सिर्फ और वो भी मामूली सी, बहुत कम लोगों को हाई लेवल ऑक्सीजन और बहुत ही गिने-चुने लोगों को वेंटिलेटर की आवश्यकता थी। अब हालत ये है कि 80 पर्सेंट लोग जो आ रहे हैं वो हाई फ्लो ऑक्सीजन की मांग पर आ रहे हैं आईसीयू के अंदर सीधे, सीधे आपके वेंटिलेटर की आवश्यकता और यंग, बच्चे और प्रेग्नेंट औरतें भी आ रही हैं और साथ में मर रहे हैं क्योंकि 2 दिन का स्टे, 3 दिन का स्टे, 12 घंटे का, 9 घंटे का, 7 घंटे का स्टे क्योंकि पहले आते थे तो कोई-कोई अगर लेट आता था तो तकलीफ पाता था, वरना तो जो सब थे वो ठीक हो जाते थे। अब तो आते ही लेट हैं कई तो और कोरोना का नया प्रकोप जो ये आया है, ये भी ऐसा आया है जो बहुत जल्दी फैलाता है, तो परिवार के परिवार एकसाथ आकर भर्ती होते हैं, तीन-चार मेंबर परिवारों के, धर्मेंद्र राठौड़ जी तो चारों के चारों ही संक्रमित हो गए हैं, ऐसे बहुत से लोग हो गए हैं जो इस प्रकार की स्थिति में रहते हैं। तो कहने का मतलब यही कि ये अभी जो ये कोरोना संक्रमण का नया ये आया है वेरियंट, ये इस प्रकार का आ गया है जो कि जल्दी फैलता है, तेजी से फैलता है, ज्यादा घातक है, सीधा निमोनिया करता है, लंग्स पर जाता है, मृत्युदर ज्यादा हो गई है, ऑक्सीजन की रिक्वायरमेंट इतनी हो गई है कि हम भीख मांग रहे हैं केंद्र सरकार से, इसलिए मैंने तीन मंत्रियों को भेजा केंद्र में, मिलकर आए सबसे, सब आप सबको मालूम होगा। अमित शाह जी से मैंने आज सुबह ही बात की, परसों बात की, कैबिनेट सेक्रेटरी, सिक्योरिटी एडवाइजर टू प्राइम मिनिस्टर मिस्टर डोवाल, प्रिंसिपल सेक्रेटरी टू प्राइम मिनिस्टर मिस्टर मिश्रा, किसी को छोड़ा ही नहीं मैंने। कई नाम ऐसे होंगे, मैं रोज बात करता रहता हूं, मैंने हैल्थ सेक्रेटरी से बात की, मिस्टर जो ये बांटते हैं ऑक्सीजन ट्रांसपोर्ट सेक्रेटरी हैं, सबसे मैंने बात की और भीख मांग रहे हैं हम ऑक्सीजन की, दवाइयों की, ये स्थिति हमारी है। टैंकर की, टैंकर नहीं हैं हमारे पास, ये अलग तरह के टैंकर होते हैं, आज अमित शाह जी ने कहा कि मैं 5 टैंकर आपको अलॉट कर रहा हूं, अब बताइए, गृह मंत्री देश का 5 टैंकर के लिए मुझे फोन कर रहा है, तो ये स्थिति देश में आज अभी बनी हुई है और मैं आपको क्या समझाऊं, आनंद कुमार जी आप भी दिल्ली रहते हो, अजय माकन जी भी दिल्ली रहते हैं, रोज शाम को टीवी देखते होंगे, क्या-क्या दृश्य आ रहे हैं वहां पर, क्या-क्या वहां पर डॉक्टर्स लोग राय दे रहे हैं, क्या मारामारी ऑक्सीजन की है, कैसे सीन आ रहे हैं ऑक्सीजन के अंदर, चाहे मध्य प्रदेश हो, चाहे यूपी के हों, हम ये आंकड़े छिपाते नहीं हैं, कई राज्य तो अपने आंकड़े छिपाते भी हैं, सबकुछ करते होंगे, पर हकीक़त है कि हमने फिर भी काफी हद तक कंट्रोल रखा है। पर हमारे यहां भी मृत्युदर, आज ही मैंने विज्ञापन दिया है, बहुत ही कड़वा विज्ञापन दिया है, अजय माकन जी अगर वहां छपा हो दिल्ली में तो देखना, वरना मैं भेज दूंगा आपको कि जिसमें मैंने दो टूक बात की पब्लिक से भी। आज 3 मई से हमने 15 दिन का जो लॉकडाउन लगाया है, एक प्रकार से लॉकडाउन ही है वो, नाम दिया है उसका हमने, जन अनुशासन पखवाड़ा तो था पहले, उसको हमने जोड़ दिया है, एक प्रकार से थोड़ा ज्यादा। तो कहने का मतलब है कि इस प्रकार से हमने उसको किया है कि जिससे पब्लिक में जाए दो टूक कि घातक है, समझ जाओ, संभल जाओ बचना है तो, उसी ढंग से आप बिहेव करो जैसे कि आप कोरोना लॉकडाउन में रह रहे हो, उस ढंग से बिहेव करो कि लॉकडाउन में ही हो आप।
कल शाम को पुलिस का फ्लैगमार्च करवाया मैंने पूरे राजस्थान के हर जिले के अंदर घोड़ों से भी और पैदल मार्च से भी, गाड़ियों से भी, जिला कलेक्टर्स, एसपी, कमिश्नर, आईजी और तमाम पुलिस फोर्स से मार्च करवाया ताकि लोगों को लगे कि स्थिति यह है कि क्या स्थिति बन गई है। इस रूप में हमने जो है आज सुबह 5 से 12 बजे तक दुकानें खुलीं, उसके बाद में आज हमारा कर्फ्यू शुरू हो गया है, कल सुबह 5 बजे से दुकानें खुलेंगी, मजदूरों को छूट दी गई है, रेड अलर्ट, रेड अलर्ट जनअनुशासन पखवाड़ा नाम दिया है। तो इस प्रकार से हमने कहने का मतलब है कि सब तरह से हम कोशिश कर रहे हैं कि कैसे लोगों की जान बच जाए और जब सुनते हैं, अभी 24 लोग मर गए अभी 3-4 घंटे पहले ही कर्नाटक के अंदर, गवर्नमेंट हॉस्पिटल के अंदर ऑक्सीजन बंद हो गई और लोग मारे गए, अभी चार-साढ़े चार घंटे पहले की बात है, पूरा मीडिया उसी को लेकर चल रहा है, तो आप बताइए कि हम तो चिंता कर रहे हैं कि राजस्थान को कैसे हम बचाएं, इस रूप में हम लोग इसको लेते हैं कि काम आगे बढ़े। जिस रूप में मैं समझता हूं कि हम सबको मिलकर काम करना है और आप निश्चिंत रहो, जो-जो बातें आज कही गई हैं, उसमें मैं खुद चाहूंगा हम आगे बढ़ें, थोड़ा, वैसे हमने कई प्रयोग किए हैं जो अभी श्रीमाली जी कह रहे थे कि सिलिकोसिस, अरुणा राय जी की टीम जो है बहुत अच्छा काम कर रही है, निखिल डे ने अच्छा काम किया, सरकार ने ध्यान आकर्षित किया सिलिकोसिस बीमारी। अब आप कल्पना करो, हम लोग सोचते हैं कि उन मजदूरों की जिंदगी क्या है जो देश का निर्माण करता है? आप कितने ही बड़े उद्योग लगा दो, फैक्ट्रियां लगा दो, कुछ भी कर दो, जैसा कि अभी जूली कह रहे थे कि हम कहां के कहां पहुंच गए, हवाई जहाज बनने लग गए, बनाए किसने, मजदूर ने ही बनाए। आप बताइए कि जो मजदूर सबकुछ कर रहा है, उसके लिए हम क्या कर रहे हैं? तो सिलिकोसिस बीमारी जो माइनिंग में काम मजदूर करता है, आप बताइए आज तक ये 10-12 साल छोड़ दीजिए, आज तक उस बीमारी को कोई समझ भी नहीं पाया, देश की बात तो मैं नहीं करता और मैं समझता हूं कि देश में ऐसी स्थिति होगी, सिलिकोसिस बीमारी को टीबी समझते थे लोग, इलाज करते थे टीबी का उसको मरीज को, आप बताइए, अब जब मालूम पड़ा कि ये टीबी नहीं है, सिलिकोसिस बीमारी जो है, तो जो माइनिंग में जो काम करते हैं तो जो खंग उड़ती है, माइक्रो पार्टिकल्स, वो जमते हैं फेफड़ों में और उसको हो जाती है, सिलिकोसिस हो जाती है और उसकी जिंदगी तो, आप समझ लीजिए। उसके लिए हमने अलग से पॉलिसी बनाई, स्कीम बनाई है, उनको हम लाखों रुपए की मदद कर रहे हैं, तो भी हमें संतोष नहीं है। माइनिंग के ओनर्स को पाबंद किया हुआ है कि किस प्रकार उनको जब वो माइनिंग का काम करेगा तो उसको क्या-क्या उनको प्रोटेक्शन देने हैं, क्या-क्या उनको सुविधाएं देनी हैं, सबकुछ किया, कानून बनाया, मजदूर खुद भी लापरवाही कर देते हैं। आप बताइए कि इस प्रकार की जिंदगी मजदूर की हो, वो मजदूर सम्मान का पात्र है, गरिमा का पात्र है कि जिंदगी जीने का पात्र है, जिसके बगैर तो आप एक बिल्डिंग अपना मकान भी खड़ा नहीं कर सकते। हम जिस बंगले में रहते हैं, उड़ते हैं, सबकुछ मजदूर के बेसिस पर है। इसलिए दुनिया के मजदूरों के एक होने की बात जो की गई थी, मैं समझता हूं कि आज भी मौजूं है वो और हमें आने वाले वक्त में जो कुछ कर सकते हैं, आनंद शर्मा जी मैं आपको विश्वास दिलाना चाहूंगा कि ये चिरंजीवी योजना हमारी ऐतिहासिक है ये, 5 लाख का बीमा हो गया ऑटोमेटिक ही सबका गरीबों का, एक नया पैसा उसको नहीं देना है, पूरा प्रीमियम 3 हजार करोड़ रुपए का हम दे रहे हैं, 400 करोड़ रुपए मुश्किल से भारत सरकार आयुष्मान भारत की स्कीम जो थी पहले उसमें मिलते थे हमें, बाकी हम ही दे रहे थे, हो सकता है कि वो ऐतराज़ कर दें कि आपने नाम बदलकर चिरंजीवी कर दिया, हो सकता है कि बंद कर दें वो अलग बात है, 300-400 करोड़ रुपए, हम उसकी परवाह भी नहीं करेंगे, हम लागू रखेंगे इस योजना को और मैंने अभी परसों ही मैंने ट्वीट किया है कि मुझे महसूस हो रहा है कि मजदूर, असंगठित मजदूर विशेष रूप से, संगठित मजदूर भी होंगे, रेहड़ी वाले, ठेलेवाले, घर में काम करने वाले, ये अभी तक कई लोगों ने अभी तक खुद को जोड़ा ही नहीं है उससे जो फ्री स्कीम है। मुझे एक डॉक्टर ने कहा कि आज हमारे जो आपकी वीसी चल रही थी चिरंजीवी योजना की लॉन्चिंग, तो डॉक्टर ने मुझे कहा मीटिंग खत्म होने के बाद में कि क्या सर हम अपने नौकरों का, ड्राइवरों का भी करवा सकते हैं क्या इसके अंदर? उसी वक्त मैंने ट्वीट किया, हमने ट्वीट करवाया, इसका मतलब है कि उनको नहीं मालूम है पढ़े-लिखे डॉक्टरों को भी कि हम अपने नौकर का, सर्वेंट का, गरीब का करवा सकते हैं क्या तो मैंने ट्वीट किया कि हमारी नैतिक जिम्मेदारी है ये सबकी, आप लोगों की, जो आपके मिलने वाले हैं गरीब आदमी हैं जो मजदूर हैं या घर का नौकर है या ड्राइवर है या कोई भी है, उनको समझाओ भले लोगों को कि 1 मई के बाद अगर तुम बीमार पड़ जाओगे, तो तुम जो अगर चले गए प्राइवेट में अगर कहीं पर तो 25 हजार, 50 हजार, 1 लाख का खर्चा जो सरकार दे देती, बीमा कंपनी दे रही है वो आप नहीं दे पाओगे। पर क्योंकि मैंने परसों ही इसके लिए 1 महीना और इंश्योरेंस कंपनी से बात करके बढ़वा दिया है कि कोरोना कारण से कई लोग रजिस्ट्रेशन नहीं करवा पाए हैं, 31 मई तक अगर कोई करवाएगा, उसको उसी दिन से लागू हो जाएगी स्कीम, यानि 1 महीने की छूट दिलवा दी है। मगर आप कृपा करके आपकी नैतिक जिम्मेदारी है कि आप इसको आगे से आगे फैलाओ और सुनिश्चित करो कि कोई व्यक्ति इसमें बाकी नहीं रहे रजिस्ट्रेशन करवाने से। सिम्पल रजिस्ट्रेशन होना है अपना नंबर देकर, जन आधार कार्ड का नबंर देकर और कुछ नहीं करना है। ये तो मैंने एग्जाम्पल दिया है आपको कि हमारी तरफ से तो कोई कमी रखेंगे नहीं और इसमें मजदूर लोग ज्यादा, उनको फ्री कर रखा है सबको, खाली 1 क्लास जो पैसा दे सकती है उनका प्रीमियम भी आधा हम दे रहे हैं, सिर्फ 850 रुपए उनसे ले रहे हैं जो लोग 1/5 होंगे या बहुत कम होंगे, बाकी सबका फ्री कर दिया है हमने, लघु-सीमांत कृषक किसान हो, चाहे वो मजदूर हों, चाहे कोई भी हों, चाए एनएफएसए से जुड़े हुए लोग हों, चाहे एसईएससी सर्वे से जुड़े हुए लोग हों। इस प्रकार से इस स्कीम को, लागू किया है। बाकी तो जैसे पिछली बार कोरोना काल में जो नारा दिया था कि कोई भूखा नहीं सोएगा और वास्तव में मुझे गर्व है कहते हुए कि प्रदेशवासियों ने, एनजीओ ने, एक्टिविस्ट्स ने, एमएलए को हमने कहा कि 50 लाख का फंड आपको अलाऊ है, उन्होंने, धर्म गुरुओं ने और संस्थाओं ने मिलकर इतनी मदद की है, हर वर्ग इन्वॉल्व हो गया एक साल तक, चाहे वो पुलिसकर्मी हों चाहे कोई हों, खाना पहुंचाना हो, घरों में थे लॉकडाउन था, तो राजस्थान में कोई कमी नहीं रखी, मजदूर पैदल चल रहे थे राजस्थान में कोई शिकायत आपको नहीं आई, मजदूर राजस्थान में हमने इतनी बसें लगा दीं, असम तक बसें गईं हमारी, बिहार तक गईं, मुम्बई तक गईं, बैंगलूरु तक गईं, केरल तक गईं बसें हमारी और राजस्थान में हमने एसडीओ को कह दिया कि तुम्हारे इलाके में कोई मजदूर पैदल चलता हुआ नहीं दिखना चाहिए हम लोगों को। उनको इकट्ठा करो, कैंप लगाओ, खाने-पीने का इंतजाम करो जब तक कि बसें नहीं आएं, बस आए तो बस से छोड़ो चाहे राजस्थान के अंदर छोड़ो जिलों के अंदर चाहे राजस्थान के बाहर छोड़ो यूपी में, हरियाणा में, मध्य प्रदेश में सब जगह भेजीं हमने बसें और 1-2 लाख स्टूडेंट्स को भेजा हमने ट्रेनों के अंदर, सब खर्चा हम लोगों ने वहन किया। कहने का मतलब कि कोरोना के अंदर मैनेजमेंट बहुत शानदार हुआ और आज मैं कहना चाहूंगा कि हमारे साथी श्रीमाली जी को, ये जबसे बने हैं, ये नौजवान थे तबसे ही जुड़ गए इंटक से और जगदीश जी श्रीमाली और जिस रूप में इन्होंने प्रदेशाध्यक्ष के रूप में काम संभाला है, इसके लिए ये बधाई के पात्र हैं और रात-दिन एक किए हुए हैं और मैं उम्मीद करता हूं कि इनके नेतृत्व में जो आज हम सबने जो बात की है, आनंद कुमार जी ने भी, अजय भाई ने भी, जूली साहब ने भी, धर्मेंद्र राठौड़ ने भी, सब पर हम लोग चिंतन करेंगे, मनन करेंगे। आने वाले वक्त में और ज्यादा मजबूती से राजस्थान में इंटक मजबूत हो, उसमें कोई कसर नहीं छोड़ेंगे। यही बात कहता हुआ मैं आप सबका शुक्रिया अदा करता हूं, आपने मुझे जन्मदिवस की बधाई दी, जन्मदिवस तो मैं मनाता भी नहीं हूं, पर भीड़ आती है, रक्तदान करते हैं लोगबाग, इस बार मैंने कहा, भइया कोरोना है, जरा ध्यान रखो। तो मुझे खुशी है कि आज मैं आपके साथ में बैठा हुआ हूं, मुझे आनंद की अनुभूति हो रही है और मैं आप सबके साथ में बैठा, बैठकर इतनी बातें सुनने का मौका मिला, मेरा और ज्ञानवर्धन हुआ, इसका उपयोग मैं करूंगा आने वाले वक्त में मजदूरों के हित में, यही बात कहता हुआ अपनी बात समाप्त करता हूं, धन्यवाद।

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