Shri Ashok Gehlot

Former Chief Minister of Rajasthan, MLA from Sardarpura

Media Talk

दिनांक
08/12/2020
स्थान
जयपुर


सवाल: सर जिस तरह से केंद्र सरकार तीन कृषि कानून लेकर आई उसके बाद हर जगह विरोध प्रदर्शन हो रहा है, कांग्रेस भी समर्थन कर रही है, ये अड़ियल रवैया क्यूँ केंद्र सरकार का?
जवाब: देखिये ये नौबत आनी ही नहीं चाहिए थी। अगर पार्लियामेंट्री प्रक्रिया पूरी की जाती तो शायद ये नौबत नहीं आती। जिस रूप में पार्लियामेंट के अंदर तमाशे हुए, विपक्ष की बात नहीं सुनी गयी, आनन-फानन में कानून बना दिए गए, अगर सेलेक्ट कमेटी में भेज देते इसको वहां भी मेजोरिटी सत्ता पक्ष की होती है और मानलो तमाम लोग मिलकर बातचीत करते, किसान नेताओं से बात करती कमेटी उसके बाद में रिकमेंडेशन आती पार्लियामेंट के अंदर और फिर पास होता तो नौबत नहीं आती। जिस रूप में सरकार का जो रवैया है जो मैं बार-बार कहता हूँ कि लोकतंतंत्रिक सोच इनकी नहीं है फासिस्टी सोच इनकी है, जो लक्ष्य बना दिया उसको पूरा करो चाहे येन-केन-प्रकारेण नीति रही है जबसे सरकार बनी है छह साल से। उसके कारण से ये फैसले भी ऐसे ही हुए हैं जिसकी जरूरत नहीं थी, जब पूरे देश का स्टेक होल्डर किसान है, इतना बड़ा मुद्दा था तो कम से कम अभी जरूरत क्या थी जल्दबाजी करने की। कोविड के बाद में पूरी अर्थव्यवस्था तहस-नहस हो चुकी है केंद्र की भी राज्यों की भी उसपे चिंता करनी चाहिए थी। लॉकडाउन के बाद में अनलॉक हुआ तो राज्यों के सामने कितनी समस्याएँ आ रही हैं अर्थव्यवस्था के हिसाब से, जीएसटी तक नहीं दी जा रही है राज्यों को, उसमें आपने एकदम फैसले कर लिए, ऑर्डिनेंस लेकर आए और जिस रूप में सुनवाई नहीं की गयी मुझे समझ नहीं आता कि लोकतंत्र में कोई व्यक्ति अपनी बात कहना चाहे उसे सुनने में क्या तकलीफ आ रही है? किसान नेताओं की नहीं सुनो आप, विपक्षी पार्टियों की नहीं सुनो, संवाद नहीं रखो, ज्ञापन लेने के लिए तैयार नहीं हो। राज्य सरकारों ने कानून पास किये जो कांग्रेस शासित राज्य सरकारें थीं तो राज्यपाल महोदय के यहां अटके पड़े हैं वो भेजे नहीं जा रहे राष्ट्रपति महोदय को, राष्ट्रपति महोदय से हमने टाइम माँगा, पंजाब सीएम ने माँगा नहीं मिला, फिर हम लोगों ने चारों मुख्यमंत्रियों ने टाइम माँगा-राजस्थान, छत्तीसगढ़, पंजाब, पुड्डुचेरी...मैंने खुद ने चार-पांच दिन तक लिखा है राष्ट्रपति महोदय के यहाँ पर, मेरे ऑफिस से लिखा है, हम आके अपनी बात कहना चाहते हैं। अगर ये तमाम प्रक्रियाएं होतीं तो स्वतः ही कोई न कोई बात सामने आती और ये रास्ता निकलता, हो सकता है सरकार के सामने कोई फीडबैक आता एक्सट्रा तो नुकसान क्या होता? अगर फीडबैक आए और सरकार अब कह रही है हम अमेंडमेंट करने के लिए तैयार हैं, अमेंडमेंट कर लेंगे तो अगर डायलॉग रहते उस वक़्त में उसके माध्यम से अगर मान लीजिये कुछ पॉइंट्स ऐसे आते जोकि सरकार की समझ में आ जाते जो अब समझ में आ रहे हैं तो उसी वक़्त में स्थिति ही नहीं पैदा होती कि लोग सड़कों पर आएं 12-13 दिन से सर्दी में बैठे हुए हैं किसान लोग, क्या बीत रही होगी उनके ऊपर, बाल-बच्चों पर, परिवार पर, पूरे देश का किसान उद्वेलित है, चिंतित है अपने भविष्य को लेकर के, ये नौबत ही नहीं आती। सरकार का तो रवैया ही यही है और इसी कारण से आज पूरे देश में किसान ने बंद का आयोजन किया, लोगों ने रिस्पॉन्ड किया, अब भी सरकार को समझ लेना चाहिए कि किसानों की भावनाओं का सम्मान करे, उनको बुलाकर प्यार से बात करे और रास्ता निकाले जिससे कि वापस शान्ति कायम हो सके।

सवाल: पहले ही डिस्कस कर लेते, लोगों से बात कर लेते, किसान संगठनों से बात कर लेते तो ये नौबत नहीं आती, आपको नहीं लगता हठधर्मिता दिखाई इन लोगों ने?
जवाब: मेरा ये मानना है कि बातचीत, डायलॉग तो लोकतंत्र का मूल है, लोकतंत्र में हमेशा डायलॉग कायम रहना चाहिए, पक्ष से विपक्ष से। यहां तो किसी से डायलॉग नहीं किया गया इस कारण से ये नौबत आई है। बहुत अनफॉर्चुनेट हुआ है।

Best viewed in 1024X768 screen settings with IE8 or Higher