Shri Ashok Gehlot

Former Chief Minister of Rajasthan, MLA from Sardarpura

Talked to media at Secretariat, Jaipur

दिनांक
26/01/2021
स्थान
जयपुर


गणतंत्र दिवस के पावन अवसर पर भी किसानों को जो दो महीने से अधिक समय से जिस रूप में ठंड के अंदर बैठना पड़ा, धरने देने पड़े, ये बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति रही है, देशहित में भी नहीं है क्योंकि किसान जो अन्नदाता कहलाता है अगर उसको ये स्थिति पैदा हो जाए देश के अंदर, उसकी बात सुनने के लिए कोई तैयार नहीं हो, उनकी भावनाओं को समझ नहीं पा रहा है कोई भी, ये बहुत ही अन्फॉर्च्यूनेट बात है कि आज ठंड पड़ रही है भयंकर, उसके अंदर सड़कों पर बैठे हुए हैं जिस रूप में, ट्रैक्टर रैली निकाल रहे हैं आज के दिन भी, तो समझना चाहिए कि जय जवान जय किसान की बात हम करते हैं तो जवान भी बॉर्डर पर हैं, वो देश की रक्षा कर रहा है और किसान को आज अगर बैठना पड़े इस प्रकार से धरने देकर लंबे समय तक, तो मैं ये समझता हूं कि ये उचित नहीं है। मांगे हर वर्ग रखता है, कोई रास्ता निकल सकता है, पर क्योंकि शुरू से ही इसकी प्रक्रिया गलत की गई, पार्लियामेंट के अंदर भी विपक्ष की बात सुनी नहीं गई, आज अगर ये कमेटी को सौंप देते मामला जिस सलेक्ट कमेटी में जिसमें सब पॉलिटिकल पार्टी के लोग होते हैं, वो लोगों की ओपिनियन ले लेते देशवासियों की, किसानों की तो आज ये नौबत नहीं आती। इतना बड़ा अविश्वास पैदा हो गया, इसका मूल कारण अविश्वास है, तो क्या डेमोक्रेसी के अंदर सरकारें फैसले नहीं बदलती हैं क्या ? फैसला बदलना, जनभावना देखकर फैसला बदलना कोई किसी की अवमानना नहीं है। बल्कि बड़प्पन दिखता है कि सरकार में हम लोग हैं, उसमें अगर आपने कोई फैसला या कोई कानून विड्रॉ कर लिया या समाप्त कर दिया, तो क्या बिगड़ने वाला है आपका? कल आप किसानों से बात करके नया कानून पेश कर सकते हो, नया कानून ला सकते हो। ये समझ के परे है जो इनकी अप्रोच है, जब हम आरोप लगाते हैं बार-बार कि इनका कोई विश्वास नहीं है डेमोक्रेसी के अंदर, ये और प्रूव हो गया है ये 70 दिन के अंदर कि आज कितने लोग मारे गए हैं, 150 के फिगर आ रहे हैं मरने वालों के। तो आप सोच सकते हो कि अगर डेमोक्रेसी में विश्वास होता इनका, अगर फासिस्टी प्रवृत्ति नहीं होती, अगर अहम् घमंड नहीं होता, तो मेरे ख्याल से ये नौबत नहीं आती। आज पूरा विश्व देख रहा है हिंदुस्तान की तरफ कि हिंदुस्तान में हो क्या रहा है। हिंदुस्तान के अंदर किसान लोग जो आन्दोलन कर रहे हैं, ये देश के इतिहास में आज तक ऐसा कभी नहीं हुआ है। उस अन्नदाता को आप किस रूप में बेइज्जती कर रहे हो, ये आपको किसने अधिकार दिया? ये सोचने की बात है।

सवाल- कांग्रेस बड़ा आन्दोलन कर रही है, आपको लगता है कांग्रेस को क्रेडिट नहीं मिल जाए इसलिए कहीं न कहीं केंद्र सरकार डर रही है आन्दोलनकर्ताओं से?
जवाब- देखिए कोई ऐसा नहीं है, इसमें सभी पॉलिटिकल पार्टीज विपक्ष की हैं, वो भी अपने आपको खाली एकजुटता दिखा रही हैं उनके साथ में। जैसे किसान संगठनों की भावना है कि आन्दोलन को पॉलिटिसाइज नहीं करना चाहते, हम भी स्वीकार करते हैं इस बात को कि इसका राजनीतिकरण नहीं हो। अभी तक मैं उनको मुबारकबाद दूंगा, बधाई दूंगा जिस रूप में इन्होंने शांति-सद्भाव के साथ में आन्दोलन किया है, ये भी अपने आपमें बहुत बड़ी उपलब्धि है उनकी और विपक्ष की पार्टियां खाली एकजुटता दिखाती हैं, वो हमारा फर्ज़ बनता है। तो मैं सोचता हूं कि देश में देखिए कैसी स्थिति आ गई है कि आज तमाम संस्थाएं ज्यूडीशियरी के ऊपर दबाव है, देश में सीबीआई-इनकम टैक्स-ईडी का आप देख ही रहे हो कि किस प्रकार से दबाव में काम कर रही है, किस प्रकार से सरकारें गिराने के लिए षड्यंत्र हो रहे हैं, पहले गोवा में और मणिपुर में, अरुणाचल प्रदेश में हुआ था, बाद में कर्नाटक-मध्यप्रदेश की सरकारें गिराई गईं, राजस्थान में इनकी चल नहीं पाई है, कोई कमी रखी नहीं थी इन लोगों ने। जिस रूप में राजस्थान में पब्लिक एकजुट हुई, उसके कारण इनको मुंह की खानी पड़ी। पर आज डेमोक्रेसी में इस प्रकार से सरकारें गिराई जाती हैं क्या खरीद-फरोख्त करके? आप खरीदकर कैसे विधायकों को आप गुजरात में भी, राजस्थान में भी आप इस्तीफे दिलवा रहे हो राज्यसभा चुनाव जीतने के लिए। तो ये देश में पहली बार तमाशे हो रहे हैं, इनको समझने की आवश्यकता है और मीडिया को समझने की आवश्यकता है। मीडिया इतने दबाव के अंदर है देश के अंदर, मीडिया इतना दबाव में आज तक कभी नहीं रहा है। हमेशा अगर मीडिया के बारे में कोई फैसला होने लगा सरकार द्वारा, तो पूरा मीडिया एकजुट होकर विरोध करता था उसका, वो टाइम भी था, हमने देखा है और आज मीडिया इतना दबाव में है, डर गया, भयग्रस्त है वो भी इनकम टैक्स से, सीबीआई-ईडी से तो आप सोचिए कि डेमोक्रेसी कहां रहेगी ? डेमोक्रेसी में आप जो असहमति व्यक्त करते हैं, उसका वेलकम होना चाहिए और इस देश के अंदर अगर आप असहमत हैं सरकार के विचारों से तो आप देशद्रोही हो, ये हालात बना दिए हैं देश के अंदर। तो देशवासियों को अगर समय रहते समझ में नहीं आएगी तो पूरे देश को आने वाले वक्त में बहुत बड़ी चुनौतियों का मुकाबला करना पड़ेगा और मैं समझता हूं कि देशहित में वो नहीं होगा।

सवाल- डब्ल्यूएचओ जैसी संस्था ने राजस्थान के वैक्सीन पैरामीटर्स की तारीफ की है?
जवाब- देखिए राजस्थान में तो पब्लिक ने साथ दिया लॉकडाउन के वक्त में, सारी संस्थाओं ने साथ दिया, हमने पॉलिटिकल पार्टियों को साथ लेने की कोशिश की, धर्मगुरुओं को साथ लिया, तो कोरोना का मैनेजमेंट भी अच्छा हुआ और वैक्सीनेशन के लिए भी डब्ल्यूएचओ अगर कहता है तो वो मायने रखता है कि वो काम भी हमारे यहां टॉप पर चल रहा है, सारे पैरामीटर्स पर राजस्थान खरा उतरा है एकमात्र राज्य राजस्थान है देश के अंदर जो तमाम पैरामीटर्स पर खरा उतरा है, इस बात की हमें बहुत ही खुशी है।

सवाल- पेट्रोल 100 रुपए पहुंच गया है, कोई बोलने को तैयार नहीं है?
जवाब- वो केंद्र सरकार की अर्थव्यवस्था जिस रूप में वो बताना नहीं चाहते हैं कि क्या स्थिति है। आरबीआई कभी-कभी अपना मुंह खोलता है, कोई बोल नहीं रहा है। पेट्रोल के दाम जब 60-65 रुपए हो गए थे यूपीए गवर्नमेंट के वक्त में 140 डॉलर प्रति बैरल रेट्स थीं उस वक्त में, अब वो 40 पर आ गई हैं, 35 पर आ गई हैं, तब भी भाव कम करने की बजाय बढ़ाए क्यों जा रहे हैं? राज्यों को दोष देना बहुत ही बकवास बात है, राज्य कुछ एक्साइज वसूल करती हैं, मुख्य रूप से जो एक्साइज और एडिशनल एक्साइज और आपको जानकर दुःख होगा कि जो एक्साइज मिलती है तीन तरह की एक्साइज है वहां पर जो लगती है पेट्रोल-डीजल पर। एक एक्साइज जिसमें राज्यों का हिस्सा होता है सब राज्यों का, उसको तो घटा रहे हैं वहां पर और जो हिस्सा राज्यों का नहीं होता है उसको बढ़ा रहे हैं अपनी इनकम करने के लिए, तो इनका वित्तीय प्रबंधन है कहां पर। आर्थिक संकट से देश गुज़र रहा है, भयंकर आर्थिक संकट है, जीडीपी आपकी माइनस में जाने लग गई है, हालात बड़े गंभीर हैं, बेकारी-बेरोजगारी की समस्या इतनी बड़ी बढ़ गई है जिससे आज नौजवान चिंतित है अपने भविष्य को लेकर। कोरोना के अंदर जो नौकरी चली गई लाखों-करोड़ों लोगों की, उसके ऊपर कोई कार्रवाई नहीं हो रही है कि हम क्या स्कीमें बनाएं जिससे कि वापस ले लोगों को रोजगार मिल सके, ये चिंता देश के अंदर सरकार को नहीं है।

सवाल- बजट सत्र भी आने वाला है, तो किस तरह चैलेंजिंग रहेगा, कटौतियां करेंगे, किसानों को राहत देने की मांग ?
जवाब- तैयारियां हमने शुरू कर दी हैं अभी से ही बजट की। हम चाहेंगे कि मैक्सिमम कैसे लोगों के, गुड गवर्नेंस को आधार बनाकर हम लोग क्या फैसले कर सकते हैं, वो फैसले करने की कोशिश करेंगे चाहे पानी-बिजली-शिक्षा-स्वास्थ्य-सड़कें चाहे जो भी हो, उसमें हम लोग पूरा ध्यान दे रहे हैं और सरकारी और गैर-सरकारी नौकरियां कैसे लग सकें नौजवानों की, उसपर हमारा फोकस रहेगा क्योंकि आज हमने जो प्रयास किए पिछले दो महीने से, हर क्षेत्र को हमने टच करने का प्रयास किया है और मैं उम्मीद करता हूं कि इन्वेस्टमेंट आने लगेगा, तो जाकर नौकरियों की राह खुलेगी प्राइवेट सेक्टर के अंदर भी, वो हमारा प्रयास है।

सवाल- सेंटर से आ रहा है सर जीएसटी का पैसा, उम्मीद है कि वो आपकी बात सुनेंगे ?
जवाब- कौन, राज्यों की बात सुन कौन रहा है दिल्ली के अंदर, जहां सरकारें बीजेपी की हैं उनके मुंह पर ताले लगे हुए हैं मजबूरी में, तकलीफ में वो भी हैं और जहां सरकारें बीजेपी की नहीं हैं वो बराबर लड़ाई लड़ रहे हैं। जीएसटी जो हमारा हक़ है, लिखित में वादा किया हुआ है, वो वादा पूरा नहीं कर रहे हैं लोग, तो स्थितियां बड़ी नाजुक बनी हुई हैं।

सवाल- गुलाबचंद कटारिया कहते हैं कि मंत्रिमंडल विस्तार होगा तो सरकार गिर जाएगी ?
जवाब- कटारिया जी तो अब देखिए उनकी उम्र ऐसी हो गई है कि जो फॉर्मूला है मोदी जी का, मोदी जी के फॉर्मूले के अनुसार तो इनको देखो इस्तीफा देना चाहिए। जो मार्गदर्शक मंडल बना है दिल्ली में उस जगह जाकर मतलब इनको जिम्मेदारी सौंपनी चाहिए। तो इसलिए वो तो क्या एक प्रकार से दिल्ली के नेताओं को खुश रखो कि सरकार गिराने का षड्यंत्र था। उसमें मुंह की खानी पड़ी, तो उनको खुश कैसे रखें जिससे कि खुद अपने आपका बचाव कर सकें। दूसरा उनकी पार्टी में इतनी फूट है राजस्थान में, ऐसी फूट आज तक राजस्थान में मैंने बीजेपी में कभी नहीं देखी, जो इस वक्त देखी जा रही है। तो आप सोच सकते हो कि पहली बार बीजेपी में आपस में जो प्रतिस्पर्धा हो रही है आगे बढ़ने की, वो सब आपके सामने है। ये कटारिया जी का बोलना हो या उपनेता का बोलना हो या बीजेपी अध्यक्ष का बोलना हो, ये तमाम जो बोल हैं, ये खाली अपने आपको पार्टी के अंदर स्थापित करने की प्रक्रिया का अंग हैं। ये बाकी इनके पास कुछ कहने को है नहीं, न ये विपक्ष की भूमिका निभा पा रहे हैं, ये भूमिका निभाने में ही असफल साबित हो रहे हैं, ये स्थिति इनकी बनी हुई है, कोरोना में हमने देख लिया इनके बारे में कि क्या स्थिति बनी हुई है।

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