स्व. श्री हजारी लाल शर्मा जन्म शताब्दी वर्ष एवं राष्ट्रीय मजदूर कांग्रेस (इंटक) की 181वीं प्रदेश कार्यसमिति सभा
दिनांक
18/04/2022 |
स्थान
सामुदायिक भवन केशव नगर, सिविल लाइंस (जयपुर)
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मुझे आज बहुत ही खुशी हो रही है कि पंडित हजारी लाल शर्मा जी, इनसे मेरा संबंध जो है, जब मैं एनएसयूआई में था 45 साल पहले, 1972-73 के अंदर जब कॉफी हाउस के ऊपर एक ऑफिस हुआ करता था, जो हमारे वरिष्ठ लोग बैठे होंगे यहां पर इंटक के नेताओं को मालूम होगा कि हजारी लाल जी शर्मा वहीं ऊपर विराजते थे एमआई रोड पर और मैं करीब 22 साल का था उस समय मेरे ख्याल से, तबसे मेरा उनसे परिचय हुआ और उसके बाद लगातार, जब तक वो जीवित रहे तब तक मेरा संपर्क बना रहा। इंटक में कई बार नाइत्तेफाकी भी हुई, श्रीमाली जी को तो मालूम ही होगा कि किस प्रकार से, गिरधारी लाल जी व्यास थे यहां पर राजस्थान के अंदर जो पीसीसी के प्रेसिडेंट भी थे एक बार और साथ में उनको इंटक का अध्यक्ष भी बनाया था। दो ग्रुप बन गए, चौधरी जी थे वहां उदयपुर के अंदर, वो भी वहां के बहुत बड़े नेता थे, लंबा इतिहास है, मुझे खुशी है कि पीसीसी के अंदर ही मैंने वापस एकता करवाई दोनों ग्रुप के अंदर और उसमें हम लोग सफल रहे, हमारे जगदीश श्रीमाली जी जानते होंगे, गुमान सिंह जी जानते होंगे, दो इंटक चल रही थीं आपस के अंदर, तो मुझे सौभाग्य मिला कि मैंने कोशिश की, उसमें हम कामयाब हुए, इंटक वापस से एक हो गई। इंटक का इतिहास तो जैसा आप सबको मालूम है कि बहुत पुराना है, आजादी के जस्ट पहले ही बनी थी, अभी मैं तारीख देख रहा था, तो जो मेरी बर्थडे है 3 मई और ये 3 मई 1947 में आजादी के कुछ दिनों पहले ही इंटक का निर्माण हुआ था, तो मेरा जन्मदिवस और इंटक का जन्मदिवस एक है। कांग्रेस समर्थक रहा हमेशा, इसमें कोई दो राय नहीं, नाम लेने में मुझे कोई हर्ज नहीं, मुझे अच्छा लगेगा इंटक का नाम लेने में, मेरे ख्याल से बचपन से, बचपन से देख रहा हूं मैं। हो सकता है कि एक जगह खुद के साथियों ने तय किया हो कि हमारा नाम, 4 संगठन जो हैं अग्रिम, उस रूप में, कई आ चुके हैं, मालूम नहीं, पर आज आपने ध्यान आकर्षित किया है तो हमें अच्छा लगा, इंटक का नाम आएगा तो प्रशंसा होगी। गांधी जी भी आप जानते हो कि मजदूरों को लेकर संघर्ष करते थे और पंडित नेहरू भी हमेशा मजदूरों के पक्ष में रहे, भाखड़ा डेम बना हो, या कुछ भी बना हो, तो उन्होंने तो कहा कि ये मजदूर ही राष्ट्र के निर्माता हैं। ये कोई कम बात नहीं है कि इंटक या कोई भी संगठन हो, मजदूर मजदूर है, आप मेरे विचार सुनते होंगे, मैं काफी दिन से बोल रहा हूं सोशल सिक्योरिटी, ये झंडा बुलंद करना चाहिए आप सबको। आज सवाल ये नहीं है कि हमने 252 रुपए से 259 रुपए कर दिए, 264 रुपए थे 271 रुपए कर दिए अर्द्ध कुशल के, कुशल श्रमिक के 276 रुपए थे 283 रुपए कर दिए, या उच्च कुशल श्रमिक के 326 रुपए के 333 रुपए कर दिए, कोई बहुत बड़ी बात नहीं है। बड़ी बात ये है कि आज जो है निर्माण इस देश का कैसे होगा? आज बड़ी-बड़ी बिल्डिंग्स बनती हैं, मशीनें आ गईं, बनती हैं, पर बगैर मजदूर के बन सकती हैं क्या मशीनों के बावजूद भी? तो मैं सालों से कह रहा हूं कि मजदूर जो है मजदूरी करता है, तब जाकर बिल्डिंग खड़ी होती है, राष्ट्र का निर्माण होता है और जब वो 60 साल का हो जाता है, बुजुर्ग हो जाता है, शरीर साथ नहीं देता है, फिर वो काम नहीं कर सकता है। तो क्या जिसने देश का निर्माण किया है, क्या वहां जिम्मेदारी नहीं है सरकार की कि अब जो इनका जीवन बचा है, जैसे पेंशन की बात की गई, ओपीएस हमने लागू किया तो पूरे देश के अंदर तहलका मच गया, स्वागत हो रहा है कि भई Old Age Pension लागू कर दी गई, सिक्योरिटी मिल गई कर्मचारी को क्योंकि कर्मचारी 35 साल तक काम करता है, 38 साल तक काम करता है और उसको सिक्योरिटी ही नहीं रहती है कि पता नहीं पेंशन कितनी मिलेगी? कम मिलेगी या ज्यादा मिलेगी? पैसा जमा होकर शेयर मार्केट में जाता था और आप सब जानते हो कि शेयर मार्केट सब ऊपर-नीचे होते रहते हैं, 35 साल के बाद में पता नहीं कोई यूक्रेन युद्ध हो गया या क्या हो गया, डाउन हो गया शेयर मार्केट तो पेंशन डाउन हो गई। तो ये पूरी तरह हमने फैसला किया, वो सोच-समझकर मानवीय दृष्टिकोण से किया जिसके आधार पर हम सुशासन देने की कल्पना कर रहे हैं कि गुड गवर्नेंस होनी चाहिए, सरकार शानदार चले, उसमें भूमिका कर्मचारियों की, अधिकारियों की भी होती है, मजदूरों की भी होती है, उनको सिक्योरिटी होनी चाहिए। इसलिए मैंने कहा कि गुमान सिंह जी जैसे व्यक्ति जो हैं राष्ट्रीय स्तर पर मुद्दा उठा सकते हैं कि सोशल सिक्योरिटी का टाइम आ गया है 21st सेंचुरी के अंदर, जब राजीव गांधी ने कल्पना की थी कि 21st सेंचुरी में जाएंगे, तो विकसित राष्ट्रों के मुकाबले में हम खड़े होंगे, जो दुनिया के विकसित राष्ट्र अमेरिका है, इंग्लैंड है, जर्मनी, जापान, इटली है, हम लोग भी उनके मुकाबले में आकर खड़े हों आर्थिक रूप से, सामाजिक रूप से, सभी तरह से। तो आज वक्त है कि हर इंसान को सोशल सिक्योरिटी मिले जैसे उन देशों में मिलती है, वीकली पैसा मिलता है, वीकली पैसा मिलता है वहां पर बुजुर्गों को भी, अन्य श्रेणियों को भी और सिक्योरिटी रहती है कम से कम जीवन चलाने के लिए। तो क्या हमारे मुल्क में भी अब केंद्र सरकार को चाहिए, ये टुकड़ों में बांटते हैं कि भई 6 हजार रुपए दे दिए हमने किसानों को, या कोई स्कीम बना दी हमने उनके लिए बेनिफिशियरी की, एक तबका वो भी देश के अंदर जो उसकी आलोचना करता है। आप तो इनको लाभार्थी बना रहे हो खाली और एक तबका वो भी है जो कहता है कि टैक्स पेयर्स का पैसा उनके ऊपर खर्च हो रहा है, जैसे हमारे हाउस के अंदर गुलाब चंद जी कटारिया ने कह दिया कि आपने लागू कर दिया ओल्ड एज पेंशन, आपको क्या, उस तो जिंदा नहीं रहेंगे हम लोग तो, तो टैक्स पेयर पर भार पड़ेगा, कोई भार नहीं पड़ेगा। जो सिस्टम है कंट्री का वित्तीय प्रबंधन का, वो शानदार होगा, उसी के अनुसार राज्यों को एक सरकार राज्य सरकार 1 लाख रुपए का लोन नहीं ले सकती है बगैर केंद्र सरकार की परमिशन के और केंद्र सरकार तभी परमिशन देता है, तब जाकर आपके पैरामीटर्स जो हैं फाइनेंशियल वो परफैक्ट होते हैं तब देता है, इसका मतलब है कि परफैक्ट होंगे तो ही तो परमिशन मिलेगी केंद्र सरकार से, तभी लोन लिया जाएगा, तभी वो ब्याज चुकाते हैं, लोन की किश्तें चुकाते हैं, सरकार चुकाते हैं और विकास करते हैं, ये सिस्टम पूरे हर राज्य में है, पूरी दुनिया के अंदर है, चीन जैसे मुल्क को छोड़ दो, अमेरिका जैसे मुल्क के अंदर भी कर्जा लेकर सरकारें चलती हैं। तो मैं ये निवेदन करना चाहूंगा कि सोशल सिक्योरिटी आज उन मुल्कों में मिलती है मजदूरों को सबको, तो हमारे मुल्क में भी टाइम आ गया है, कोई जमाना था आजादी के पहले का दुनिया के मजदूरों एक हो, एक ऐसा माहौल बन गया दुनिया के अंदर कि 1 मई को आज भी सब लोग करते हैं, करते हैं, पर एक फॉर्मेलिटी करते हैं, पर वास्तव में दुनिया के मजदूरों एक हो की थीम आज भी चलनी चाहिए, मजदूर मजदूर ही है, उसका विकल्प कोई हो ही नहीं सकता, मजदूर मजदूर ही है, उसका विकल्प कोई हो सकता है क्या? जो बड़े-बड़े अधिकारी बनते हैं या पदों पर जाते हैं, वो मजदूरी कर सकते हैं क्या? मजदूर ही मजदूरी कर सकता है, उसका सम्मान होना, वो सम्मान उसको मिले, उसको सिक्योरिटी मिले, बुढ़ापे के अंदर पूरी पेंशन मिले। आज हम 1500 रुपए देते हैं, साढ़े 700 देते हैं, उससे काम नहीं चलता है, ये तो हमारी मजबूरी है कि भारत सरकार 200 रुपए ही देती है, हमारी सीमा 90 लाख थी, वो 10-15-20 लाख लोगों को 200 रुपए से 500 रुपए देती है खाली, कहां तो 90 लाख लोग, हम 8 हजार करोड़ रुपए खर्च करते हैं, हमारी सरकार 8 हजार करोड़ रुपए खर्च कर रही है पेंशन देने के लिए, 90 लाख विधवाओं को, बुजुर्गों को, एकल नारी को, निःशक्तजनों को। तो मैं निवेदन करना चाहूंगा कि ये कोई राजनीतिक बात नहीं कर रहा हूं, समय आ गया है कि भारत सरकार को सोचना चाहिए, राज्यों को सोचना चाहिए, जैसा हमने ओपीएस लागू किया, ओपीएस लागू किया तो पूरे देश के अंदर मांग उठने लग गई, अभी बात कर रहे थे अभी, अभी पूछो, इन्होंने कह दिया जगदीश श्रीमाली ने, पर आप बताओ कि कर्मचारियों की मांग कभी आई क्या? मैं मजाक में कहता हूं कर्मचारियों से, मिलने आते हैं तब कि बगैर मांगे हुए तुमको ओपीएस मिला है। इसलिए मैं कहना चाहूंगा कि हम लोगों ने कई फैसले किए, चाहे आज 100 दिन का रोजगार सोनिया गांधी जी ने, डॉ. मनमोहन सिंह जी ने लागू किया, बहुत बड़ी बात है ये, पहले अकाल-सूखे पड़ते थे, तो चेहरा उतर जाते थे गांवों के अंदर, चिंता होती थी कि गाय को चारा कहां से आएगा? रोजगार कैसे मिलेगा गांववालों को? पानी मनुष्यों के साथ में ढांडों के लिए, गायों के लिए भी जरूरी था, पशुओं के लिए कहां से पानी आएगा? बहुत चिंता होती थी, नरेगा आने के बाद में वो स्थिति नहीं है और अभी हमने 100 दिन की बजाय 125 दिन मैंने कर दिए हैं नरेगा के, और तो और शहरों के अंदर, हिंदुस्तान में कहीं नहीं है, शहरों में भी हमने 100 दिन का रोजगार नरेगा के पैटर्न पर ही लागू कर दिया है अभी इंदिरा गांधी के नाम से, तो ये बहुत बड़ा फैसला है शहरों के लिए भी।